विश्वकर्मा पूजा का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मांड के दिव्य शिल्पकार और निर्माणकर्ता माना जाता है। उनकी पूजा से व्यक्ति में कार्य कुशलता, रचनात्मकता और तकनीकी कौशल का विकास होता है। कई राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
कारखानों, कार्यशालाओं और दफ्तरों में भी इस दिन विशेष पूजा आयोजित की जाती है। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की कृपा से श्रमिकों और कारीगरों को समृद्धि मिलती है और उनके कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
कन्या संक्रांति और सूर्य गोचर
वैदिक पंचांग के अनुसार, सूर्य देव हर 30 दिन में राशि परिवर्तन करते हैं। इस साल 17 सितंबर को सूर्य देव सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। यह घटना रात 01:54 बजे घटित होगी। इस दिन कन्या संक्रांति का पर्व भी मनाया जाएगा, जब लोग गंगा स्नान, सूर्य उपासना और दान करते हैं।

विश्वकर्मा पूजा 2025: शुभ मुहूर्त

- पुण्य काल: सुबह 05:36 से 11:44 बजे तक
- महा पुण्य काल: सुबह 05:36 से 07:39 बजे तक
- सूर्योदय: 06:07 बजे
- सूर्यास्त: 06:24 बजे
- ब्रह्म मुहूर्त: 04:33 से 05:20 बजे तक
- विजय मुहूर्त: 02:18 से 03:07 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त: 06:24 से 06:47 बजे तक
- निशिता मुहूर्त: 11:52 से 12:39 बजे तक
साधक अपनी सुविधा और परंपरा के अनुसार इन मुहूर्तों में स्नान-ध्यान कर भगवान विश्वकर्मा की पूजा कर सकते हैं।
पूजा के दौरान विशेष अनुष्ठान
विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर कई स्थानों पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। कारीगर, मजदूर और श्रमिक अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं। परंपरा है कि इस दिन औद्योगिक इकाइयों और कारखानों में अवकाश भी दिया जाता है ताकि सभी लोग भगवान विश्वकर्मा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
मान्यता है कि इस दिन मंत्रों का जाप और चालीसा का पाठ करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह पर्व कौशल, परिश्रम और नवाचार के सम्मान का प्रतीक है।
निष्कर्ष
इस साल 17 सितंबर 2025 को विश्वकर्मा पूजा, कन्या संक्रांति और इंदिरा एकादशी का संयोग इसे विशेष बना रहा है। भगवान विश्वकर्मा की आराधना से न केवल कार्य में सफलता मिलती है, बल्कि जीवन में समृद्धि और प्रगति के द्वार भी खुलते हैं।
