करवा चौथ यह त्योहार सुहागिनों के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अपने पतियों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैंl
किंवदंती के अनुसार, एक समय में एक सुंदर और दयालु लड़की थी जिसका नाम करवा था। वह अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती थी। एक दिन, करवा की माँ ने उसे बताया कि अगर वह करवा चौथ का व्रत रखेगी तो उसके पति की उम्र बढ़ जाएगी।
करवा ने अपने पति के लिए व्रत रखने का फैसला किया। उसने पूरे दिन उपवास किया और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला। करवा के व्रत से खुश होकर, भगवान शिव ने उसके पति को लंबी उम्र का वरदान दिया। यह व्रत इसीलिए भी रखा जाता है क्योंकि सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से बचा कर वापिस ले आई थी। तभी से करवा चौथ मनाई जाती है और इसकी विधि विधान द्वारा पूजा करी जाती है। रात को चंद्रमा देखकर उस को अर्घ्य दिया जाता है, इसके पश्चात ही महिलाएं भोजन करती हैं।क्योंकि सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से बचा कर वापिस ले आई थी। तभी से करवा चौथ मनाई जाती है और इसकी विधि विधान द्वारा पूजा करी जाती है। रात को चंद्रमा देखकर उस को अर्घ्य दिया जाता है, इसके पश्चात ही महिलाएं भोजन करती हैं।
कैसे मनाया जाता है यह त्यौहार
करवा चौथ का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है, विशेष रूप से उत्तर भारत में। इस दिन, विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन के लिए व्रत रखती हैं।
व्रत के दिन, महिलाएँ सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और नए कपड़े पहनती हैं। वे करवा माता की पूजा करती हैं और अपने पति के लिए उपवास रखती हैं। व्रत के दौरान, महिलाएँ न तो कुछ खाती हैं और न ही पानी पीती हैं।
शाम को, महिलाएँ अपने पति के साथ चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद, महिलाएँ पति के हाथों से भोजन खाती हैं। इस दिन, महिलाएँ अपने पति को छलनी से देखती हैं। यह छलनी का प्रयोग बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए किया जाता है।
करवा चौथ के व्रत में सरगी का भी अपना एक अलग ही महत्व है सरगी उस रीत को कहते हैं जिसमें महिलाएं करवा चौथ वाले दिन सूर्य उदय से पूर्व उठकर स्नान आदि कर अपनी सास के द्वारा बनाई सरगी खाकर अपने व्रत को शुरू करती हैं सरगी में फल व सेंवी दो चीजें महत्वपूर्ण होती है। जितने प्यार से सांसे अपनी बहू के लिए सरगी बनाती है उतने ही उत्साह एवं प्यार के साथ शाम को पूजा के बाद बहुएं अपनी सांसों को उपहार एवं पूजा में रखी थाली का समान आदि देती है एवं अपने सास-ससुर के चरण स्पर्श करती हैं तथा सासें अपनी बहुओं को सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद देती है।
पर्व का आध्यात्मिक महत्व
करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र में के लिए करती हैं। हिंदू मान्यताओं में ऐसा मानना है कि करवा चौथ का व्रत करने से पति एवं पत्नी के बीच का प्रेम बढ़ता है तथा साथ ही साथ पत्नी अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है, जिससे उसके पति की आयु दीर्घायु होती है। हिंदुओं के प्रतीक त्योहारों में से करवा चौथ भी बहुत ही प्रसिद्ध त्योहार है। इसे बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सुहागिन अपने पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ पूर्ण करती हैं। बाजारों में बहुत ही रौनक होती है।
वह क्षेत्र जहां यह मनाया जाता है
इस त्योहार को राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, और हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
पूजा विधि
करवा चौथ के दिन उपवास रखा जाता है। यह व्रत केवल शादीशुदा विवाहित महिलाएं ही रखती हैं क्योंकि यह व्रत बहुत ही पवित्र माना जाता है। करवा चौथ को बहुत ही पालन और नियमों के साथ किया जाता है। करवा चौथ के व्रत की कथा सुनी जाती है। पूजा के दौरान सभी महिलाएं एक नई नवेली दुल्हन की तरह सजती है। पूरा सोलह सिंगार करती हैं जैसे सुंदर साड़ी, चूड़ियां, टीका, बिंदी, नथनी, सभी प्रकार के गहने पहनती हैं।
करवा चौथ व्रत के नियम
- यह व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू कर चांद निकलने तक रखना चाहिए और चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही इसको खोला जाता है।
- शाम के समय चंद्रोदय से पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है।
- पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।
त्योहार का इतिहास
करवा चौथ का प्राचीन इतिहास है और यह हिन्दू संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है। इसका श्रेष्ठ उल्लेख महाभारत में है, जहां द्रौपदी ने इस व्रत को अपने पांच पतियों के लिए किया था।
वर्तमान वर्ष में इस त्यौहार की तिथियाँ
2023 में, करवा चौथ का त्योहार 9 नवंबर, गुरुवार को मनाया जाएगा।