गोवत्स द्वादशी, जिसे गोधूलिव्रत भी कहा जाता है, गोवत्स द्वादशी, जिसे बछ बारस या नंदिनी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, यह हिन्दुओ का त्यौहार है जो हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य गौ माता (गाय) की पूजा और सेवा करना होता है यह त्यौहार गौ माता की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है और गौ रक्षा का महत्त्व बताता है। इसके अलावा, गोवत्स द्वादशी के दिन गौशाला (गौशाला) या गौशाला दरिद्रनिवारण केंद्रों में दान दिया जाता है और गौवंशों की देखभाल की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में गौशाला या गौशाला के आसपास कैटल गौवंश को खिलाने और सेवा करने का भी प्रयास करते हैं। गोवत्स द्वादशी का मनाने से व्यक्ति को धार्मिक पुण्य प्राप्त होता है और उसके भविष्य में आनेवाली गौरक्षा के लिए आभार मिलता है।
गोवत्स द्वादशी त्यौहार की उत्पत्ति
कथा के अनुसार, एक दिन भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्रो और बछड़ों के साथ गोकुल के गौशाला में गए। वहाँ, उन्होंने गौमाताओं देखभाल कीऔर उनके साथ समय बिताया।श्रीकृष्ण ने गोपियों से कहा, “गौमाता हमारे जीवन का आधार है। वे हमें दूध, घी, दही और अन्य पोषक खाद्य पदार्थ प्रदान करती हैं। हमें उनकी पूजा और सेवा करनी चाहिए।”गोपियों ने श्रीकृष्ण की बात मान ली और उन्होंने गौमाताओं की पूजा की। श्रीकृष्ण ने भी उनके साथ मिलकर गौमाताओं की पूजा कीइस प्रकार, गोवत्स द्वादशी की शुरुआत हुई।
महत्व
गोवत्स द्वादशी त्यौहार का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है। यह त्यौहार गाय के महत्त्व और गौवंश की रक्षा का संदेश देता है। गाय को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। इसे माता का दर्जा दिया जाता है। गाय दूध, घी, दही और अन्य पोषक खाद्य पदार्थ प्रदान करती है। यह खेतों में जुताई करने और अन्य कार्यों में भी उपयोगी होती है। गोवत्स द्वादशी त्यौहार गाय के महत्त्व को याद दिलाता है और लोगों को गौवंश की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है।
वह क्षेत्र जहाँ मनाया जाता है
भारतीय राज्यों में मनाया जाता है, खासकर वहाँ जहाँ गौपालन और गौमाता की परंपरा है।
उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश भारत के गौपालन केंद्रों में से एक है और यहाँ गोवत्स द्वादशी को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
राजस्थान: राजस्थान भी गौ माता के पूजन का प्रमुख केंद्र है और यहाँ भी गोवत्स द्वादशी को महत्त्वपूर्ण रूप से मनाया जाता है
मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश में भी गोवत्स द्वादशी का आयोजन किया जाता है और यह त्यौहार गौपालन के प्रमुख क्षेत्रों में मनाया जाता है।
हरियाणा: हरियाणा भी गौपालन का प्रमुख क्षेत्र है और यहाँ गोवत्स द्वादशी को धूमधाम से मनाया जाता है।
गोवत्स द्वादशी की पूजा विधि:
- गाय और बछड़े की मूर्ति या तस्वीर
- दीपक
- फूल
- अक्षत
- रोली
- कुमकुम
- हल्दी
- चंदन
- इत्र
- चावल
- दूध
- गाय का घी
- तुलसी के पत्ते
- आसन
गोवत्स द्वादशी के लाभ:
गोवत्स द्वादशी की पूजा करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:
- गाय और बछड़े के प्रति आदर और प्रेम बढ़ता है।
- गौवंश की रक्षा करने के लिए प्रेरणा मिलती है।
- मन को शांति और सुकून मिलता है।
- पापों से मुक्ति मिलती है।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वर्तमान वर्ष में इस त्यौहार की तिथियाँ
2023 में, गोवत्स द्वादशी का त्यौहार 9 नवंबर, गुरुवार को मनाया जाएगा।
निष्कर्ष:
गोवत्स द्वादशी एक महत्त्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है जो गाय और बछड़े के प्रति आदर और प्रेम को बढ़ावा देता है। इस त्यौहार को मनाकर, हम गौवंश की रक्षा करने के लिए अपना योगदान दे सकते हैं। यह त्यौहार गाय के महत्त्व और गौवंश की रक्षा का संदेश देता है। यह त्यौहार लोगों को गाय की पूजा और सेवा करने के लिए प्रेरित करता है