दुर्गा पूजा का त्योहार भारत के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है, जिन्हें शक्ति, साहस और अच्छाई की देवी के रूप में पूजा जाता है। दुर्गा पूजा, जो भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इसका मूल संबंध मां दुर्गा के पूजन से है। इसे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ मनाया जाता है। हिंदू धर्म में दुर्गा पूजा का इतिहास बहुत पुराना है। इसे मां दुर्गा की पूजा और आराधना के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का सबसे पहला उल्लेख मार्कंडेय पुराण में मिलता है। इस पुराण में बताया गया है कि देवी दुर्गा को देवताओं द्वारा दानवों से बचाने के लिए बनाया गया था। देवताओं ने देवी दुर्गा की पूजा की और उन्हें विजयी होने के लिए आशीर्वाद दिया। इस पूजा को बाद में दुर्गा पूजा के रूप में जाना जाने लगा। दुर्गा पूजा के दसवें दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, इसलिए दुर्गा पूजा के दसवें दिन को दशहरा का दिन भी माना जाता है।इस त्योहार को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में भी मनाते हैं। इस पर्व को दुष्ट रावण पर भगवान राम की जीत के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है। लोग दशहरे की रात रावण के बड़े-बड़े पुतले और पटाखे जलाकर इस त्योहार को मनाते हैं।
कैसे मनाया जाता है यह त्योहार :
दुर्गा पूजा के दौरान, लोग मां दुर्गा की मूर्ति का पूजन करते हैं, पंडाल बनाते हैं, गाने-गीत गाते हैं, दान-धर्म करते हैं, और परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खाने का आनंद लेते हैं। इस पर्व में नवरात्रपूजा का विधान है इस पूजा में दस दिनों का अनुष्ठान होता है आश्विन के शुक्लपक्ष प्रतिपदा के दिन कलश-स्थापन होता है और उसी दिन से पूजा आरंभ हो जाती है प्रतिपदा से नवमी तक दुर्गासप्तशती का पाठ किया जाता है और दशमी को पूजा की पूर्णाहुति होती है विजयादशमी का यह दिन बड़ा ही शुभ माना जाता है लोग नाच, गान, संगीत और नाटक का दिल खोलकर आनंद लेते हैं सभी नए-नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे के घर जाकर अच्छा-अच्छा भोजन करते हैं एवं बाहर घूमने लगते हैं दुर्गापूजा हिंदुओं का एक बड़ा ही प्रसिद्ध और पवित्र पर्व है। दुर्गा पूजा एक हिंदू त्योहार है जो भारत और दुनिया भर के अन्य हिस्सों में बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है, जिन्हें शक्ति, साहस और अच्छाई की देवी के रूप में पूजा जाता है।
दुर्गा पूजा मनाने के कई तरीके हैं, लेकिन कुछ सबसे आम तरीके हैं:
- पंडालों की स्थापना: दुर्गा पूजा के दौरान, अस्थायी संरचनाएं, जिन्हें पंडालों के रूप में जाना जाता है, देवी दुर्गा और उनके दिव्य साथियों की मूर्तियों को रखने के लिए बनाई जाती हैं। ये पंडाल आमतौर पर रोशनी, फूलों और कलाकृति से सजाए जाते हैं।
- मूर्ति की स्थापना: पंडाल में आमतौर पर मिट्टी से बनी देवी दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है। मूर्ति देवी का प्रतिनिधित्व करती है और पारंपरिक कपड़ों, गहनों और सामानों से सुशोभित है।
- प्रार्थना और प्रसाद: भक्त पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा करते हैं। वे देवी का आशीर्वाद लेने के लिए मंत्रों का जाप करते हैं, भजन गाते हैं और आरती करते हैं। देवी को फूल, फल, मिठाई और नारियल जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।
- सांस्कृतिक प्रदर्शन: दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार ही नहीं बल्कि कला और संस्कृति का उत्सव भी है। पंडालों में और उसके आसपास सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे संगीत, नृत्य प्रदर्शन, नाटक और सस्वर पाठ आयोजित किए जाते हैं। ये प्रदर्शन क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करते हैं।
- धुनुची नृत्य: धुनुची दुर्गा पूजा के दौरान किया जाने वाला एक पारंपरिक नृत्य है। इसमें जलती हुई अगरबत्ती से भरे मिट्टी के बर्तन के साथ नृत्य करना शामिल है। नृत्य ड्रम और पारंपरिक संगीत की लयबद्ध ताल के साथ होता है।
- सिंदूर खेला: दुर्गा पूजा के आखिरी दिन विवाहित महिलाएं सिंदूर खेला में हिस्सा लेती हैं। वे एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर (सिंदूर) लगाते हैं और चंचलतापूर्वक इसे देवी की मूर्ति पर विवाहित जीवन और प्रजनन क्षमता के प्रतीक के रूप में लगाते हैं।
- विसर्जन: दुर्गा पूजा के अंतिम दिन, देवी दुर्गा की मूर्ति को एक जुलूस में ले जाया जाता है और एक जल निकाय में विसर्जित किया जाता है, जो उनके दिव्य निवास में वापसी का प्रतीक है। विसर्जन के नाम से जानी जाने वाली इस बारात में संगीत, नृत्य और उत्साही भक्तों का साथ होता है।
कुछ अतिरिक्त जानकारी:
- दुर्गा पूजा आमतौर पर नौ दिनों तक मनाई जाती है, जो नवरात्रि के दौरान होती है।
- दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन महाष्टमी है, जिस दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस को हराया था।
- दुर्गा पूजा का अंतिम दिन विजयादशमी है, जिस दिन देवी दुर्गा को विसर्जित किया जाता है।
त्योहार का आध्यात्मिक महत्व :
दुर्गा पूजा का आध्यात्मिक महत्व है मां दुर्गा की पूजा और उनके शक्ति के प्रतीक के रूप में। यह त्योहार हिन्दू धर्म में मां दुर्गा के बड़े भक्ति और पूजन के रूप में महत्वपूर्ण है।
- दुर्गा पूजा आमतौर पर नौ दिनों तक मनाई जाती है, जो नवरात्रि के दौरान होती है।
- दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन महाष्टमी है, जिस दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस को हराया था।
- दुर्गा पूजा का अंतिम दिन विजयादशमी है, जिस दिन देवी दुर्गा को विसर्जित किया जाता है
दुर्गा पूजा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह त्योहार शक्ति, साहस और अच्छाई के मूल्यों को भी बढ़ावा देता है।
वह क्षेत्र जहां यह मनाया जाता है: दुर्गा पूजा प्रमुख रूप से भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में मनाया जाता है, लेकिन यह भारत के अन्य क्षेत्रों में भी विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
दुर्गा पूजा भारत के पूरे देश में मनाई जाती है। लेकिन, यह त्योहार बंगाल में विशेष रूप से लोकप्रिय है। बंगाल में, दुर्गा पूजा के दौरान, भव्य उत्सवों और समारोहों का आयोजन किया जाता है
त्योहार का इतिहास : दुर्गा पूजा का इतिहास मां दुर्गा की महाकाव्य कथा और उनके लड़ाइयों के आधार पर है, जो महिषासुर के खिलाफ लड़ाई के रूप में जानी जाती है। यह त्योहार महालया से शुरू होता है और दशमी तिथि को विसर्जन के साथ समाप्त होता है। महिंसा सुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था वह ब्रम्हा जी का बहुत बड़ा भक्त था और उसने घोर तपस्या कर के ब्रह्माजी जी ऐसा वरदान मांगा की उसे कोई भी स्त्री या पुरुष यानी उसे कोई भी दुनिया का ताकत मार न सके यानी वो अमरता का वरदान चाहता था।लेकिन ब्रह्माजी ने ऐसा नही किया उन्हीने कहा मैं ऐसा वरदान नही दे सकता तुम कुछ और मांग लो तो फिर उसका कहा मुझे ऐसा वरदान दीजिये की मेरा मृतु केवल स्त्री के हाथ ही हो अन्यथा किसी ओर के हाथ न हो उसका मानना था कि स्त्री कमजोर और शक्तिहीन होती है।इसके बाद उसने ऐसा तबाही पृथ्वीलोक और स्वर्गलोक सभी जगह हाहाकार मचने लगा सभी देवता लोग भागने लगे और वो त्रिदेव के पास गए ब्रह्मा,विष्णु और महेश लेकिन वो तीनो खुद विवस थे इसका कोई तोड़ नही था क्योंकि ब्रह्माजी ने खुद वरदान दिया था इस लिए कोई कुछ नही सोच पा रहा था फिर सोचकर ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनो ने एक शक्ति का जन्म दिया। जिसने नाम दिया गया दुर्गा ओर वही दुर्गा महिंसासुर ओर सुम्भ निसुम्भ दोनों का वध किया फिर से देवो का स्वर्गलोक पर सासन हुआ उसी के बाद सभी लोग दुर्गा माता की पूजा होने लगी पर्व मनाने का समय जब श्री राम ने रावण से युद्ध से समय महादेव ओर माता दुर्गा की आशिर्वाद की जरूरत थी क्योकि महादेव का आशिर्वाद महादेव के साथ था रावण से विजय होने लोए भगवान राम ने माता दुर्गा की पूजा की थी।
वर्तमान वर्ष में इस त्यौहार की तिथियाँ :
दिनांक | देवी का नाम |
15 अक्टूबर, 2023 (कलश स्थापना) | मां शैलपुत्री |
16 अक्टूबर, 2023 द्वितीय | मां ब्रह्मचारिणी |
17 अक्टूबर, 2023 तृतीया | मां चंद्रघंटा |
18 अक्टूबर, 2023 चतुर्थी | मां कुष्मांडा |
19 अक्टूबर, 2023 पंचमी | मां स्कंदमाता |
20 अक्टूबर, 2023 (षष्ठी) | मां कात्यायनी |
21 अक्टूबर, 2023 सप्तमी | मां कालरात्रि |
22 अक्टूबर, 2023 अष्टमी | मां महागौरी |
23 अक्टूबर, 2023 नवमी | महानवमी, |
24 अक्टूबर, 2023 विसर्जन | देवी दुर्गा का विसर्जन (दशमी) |
दुर्गा पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसे आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से दशमी तक मनाया जाता है। यह त्यौहार शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। दुर्गा पूजा को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा विशेष रूप से धूमधाम से मनाई जाती है।