बद्रीनाथ
श्री बदरीनाथ धाम उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह भगवान शिव को समर्पित है और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर की वास्तुकला अत्यंत सुंदर और आकर्षक है। जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है। हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ यह हिंदू धर्म का एक प्राचीन मंदिर है,
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाबली राक्षस सहस्रकवच के अत्याचारों से परेशान होकर ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने धर्म के पुत्र के रूप में दक्ष प्रजापति की पुत्री मातामूर्ति के गर्भ से नर-नारायण के रूप में अवतार लिया और जगत कल्याण के लिए इस स्थान पर घोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी तपस्या कर रहे थे, तो एक ज्ञानी संत ने उन पर आपत्ति जताई कि भगवान विष्णु आलसी हैं और माता लक्ष्मी उनकी सेवा कर रही हैं। भगवान विष्णु इस बात से नाराज होकर बद्रीनाथ चले गए और वहाँ घोर तपस्या करने लगे। माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु की तपस्या में कोई बाधा न हो, इसलिए बद्री के सात वृक्षों का रूप धारण कर लिया। तपस्या के बाद भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी की तपस्या की सराहना की और उन्हें अपना नाम के आगे रखा। इसलिए इस मंदिर को बद्रीनाथ कहा जाता है।
मंदिर का नाम
मंदिर का नाम बदरीनाथ पड़ने की भी एक पौराणिक कथा है। राक्षस सहस्रकवच के संहार से बचनबद्ध होकर जब भगवान विष्णु नर-नारायण के बालरूप में थे तो देवी लक्ष्मी भी श्री नारायण जी की रक्षा में बेर-वृक्ष के रूप में अवतरित हुई थीं। सर्दी, वर्षा, तूफान, हिमादि से भगवान की रक्षा के लिए बेर-वृक्ष ने नारायण को चारों ओर से ढक लिया था। बेर-वृक्ष को बदरी भी कहते हैं। इसी कारण से लक्ष्मीनाथ भगवान विष्णु लक्ष्मी के बदरी रूप से इस धाम का बदरीनाथ कहलाया जाता है।
मंदिर का इतिहास
मंदिर का निर्माण कब हुआ, इसकी कोई निश्चित जानकारी नहीं है। हालांकि, माना जाता है कि यह मंदिर पहली बार 15वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा बनाया गया था। शंकराचार्य ने मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ-साथ इस क्षेत्र में हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लक्ष्मीजी ने लिया बदरी वृक्ष का रूप
एक बार भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे। तभी अचानक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु बर्फ से पूरी तरह ढक गए। माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिमपात से बचाने के लिए एक विशालकाय बेर के वृक्ष का रूप धारण कर लिया। माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने ऊपर छाया देने के लिए लगातार कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो उन्होंने देखा कि माता लक्ष्मी बर्फ से पूरी तरह ढकी हुई हैं। भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी की तपस्या की सराहना करते हुए कहा, “हे देवी! तुमने मेरे बराबर ही तपस्या की है। इसलिए आज से इस स्थान पर मुझे तुम्हारे साथ ही पूजा जाएगा। तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है, इसलिए आज से मुझे ‘बदरी के नाथ’ यानी बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।” इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा।
मंदिर की पूजा
श्री बदरीनाथ जी की पूजा वैष्णव पद्धति से होती है। मंदिर में भगवान विष्णु की शालिग्राम पत्थर की मूर्ति की पूजा की जाती है। मूर्ति चतुर्भुज अर्द्धपद्मासन ध्यानमगन मुद्रा में उत्कीर्णित है।
मंदिर के कपाट
श्री बदरीनाथ जी के मंदिर के कपाट अप्रैल के महीने में खोले जाते हैं और नवंबर के महीने में बंद कर दिए जाते हैं। मंदिर के कपाट खोलने और बंद करने के लिए एक विशेष शुभ मुहूर्त निकाला जाता है।
मंदिर का महत्त्व
श्री बदरीनाथ जी का मंदिर हिंदुओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जो हिंदू धर्म में सबसे महत्त्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं। मंदिर की यात्रा करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिव और पार्वती केदारनाथ
एक बार, शिव और पार्वती के घर में एक अनोखा मेहमान आया। वह एक छोटा-सा बच्चा था और वह बहुत ही प्यारा था। शिव और पार्वती ने उसे अपनाया और उसे प्यार से पालने लगे। लेकिन एक दिन, एक ज्ञानी संत शिव और पार्वती के घर आए। उन्होंने देखा कि शिव और पार्वती ने एक असुर को अपनाया है। असुरों को हमेशा बुराई के रूप में देखा जाता है और संत ने शिव और पार्वती को असुर को मारने के लिए कहा। शिव और पार्वती इस बात से बहुत दुखी हुए। वे असुर को नहीं मार सकते थे, क्योंकि वह उनकी प्यारा बच्चा था। लेकिन वे संत की बात भी नहीं मान सकते थे, क्योंकि वह एक ज्ञानी संत थे। इसलिए, शिव और पार्वती को अपने घर छोड़कर जाना पड़ा। वे एक तरह से ‘अवैध प्रवासी’ बन गए। वे रहने के लिए भटकते हुए सही जगह ढूँढने लगे और आखिरकार केदारनाथ में जाकर बस गए। केदारनाथ एक खूबसूरत जगह है, जो हिमालय की गोद में स्थित है। शिव और पार्वती यहाँ बहुत खुश थे। उन्होंने यहाँ एक मंदिर बनाया, जहाँ वे भगवान शिव के रूप में पूजे जाते हैं।
बद्रीनाथ में तप्त कुंड
यह मंदिर चारों ओर से बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है। सर्दियों में, मंदिर का तापमान शून्य से नीचे गिर जाता है। लेकिन मंदिर से कुछ मिनट की दूरी पर स्थित तप्त कुंड में गर्म पानी आता है। तप्त कुंड एक पवित्र कुंड है, जिसे भगवान अग्निदेव का निवास स्थान माना जाता है। कुंड का पानी साल भर गर्म रहता है और इसकी औसत तापमान 54 डिग्री सेल्सियस है। तप्त कुंड में डुबकी लगाने से कई तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जिनमें त्वचा रोग, गठिया और मांसपेशियों में दर्द से राहत मिलती है। दुनिया भर से लोग तप्त कुंड में डुबकी लगाने के लिए बद्रीनाथ आते हैं। कुंड में डुबकी लगाने से पहले, भक्त भगवान अग्निदेव की पूजा करते हैं। कुंड में डुबकी लगाने के बाद, भक्त मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन करते हैं।
बद्रीनाथ में बद्री विशाल, द बेरी ट्री
हिमालय की गोद में बसा बद्रीनाथ मंदिर हिंदू धर्म के चार धाम में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर के पास एक प्राचीन बेर का पेड़ है, जिसे बद्री विशाल कहा जाता है। एक हिंदू कथा के अनुसार, भगवान विष्णु एक बार इस स्थान पर ध्यान के लिए बैठे थे। उस दौरान मौसम काफी ठंडा था और भगवान विष्णु को ठंड से बचाने के लिए देवी लक्ष्मी ने एक बेर के पेड़ का रूप धारण कर लिया था। जब भगवान विष्णु को इसके बारे में पता चला, तो वे देवी लक्ष्मी की भक्ति से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने देवी लक्ष्मी की याद में पेड़ का नाम बद्री विशाल रखा। बद्री विशाल को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। दुनिया भर से लाखों लोग बद्रीनाथ आते हैं और बद्री विशाल के नीचे बैठकर ध्यान लगाते हैं। माना जाता है कि बद्री विशाल के नीचे ध्यान लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है आदि शंकराचार्य एक प्रसिद्ध हिंदू संत थे, जिन्होंने 10वीं शताब्दी में हिंदू धर्म के पुनरुत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बद्रीनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया और इसे एक प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में स्थापित किया। बद्रीनाथ मंदिर के महायाजक को शादी करने की अनुमति नहीं है। ऐसा माना जाता है कि इससे वे मंदिर की पवित्रता को बनाए रखने में सक्षम होते हैं। स्त्री को छूने पर भी पाप माना जाता है।
बद्रीनाथ के आसपास घूमने की जगहें
नीति घाटी : नीति घाटी बद्रीनाथ से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह घाटी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आप जंगलों, पहाड़ों और झरनों का आनंद ले सकते हैं।
गोरसन बुग्याल : गोरसन बुग्याल बद्रीनाथ से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह बुग्याल अपनी हरी-भरी घास और फूलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आप ट्रेकिंग और कैम्पिंग का आनंद ले सकते हैं।
वसुधारा झरना : वसुधारा झरना बद्रीनाथ से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह झरना अपनी ऊंचाई और शक्ति के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आप झरने के पास खड़े होकर प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।
अलकापुरी ग्लेशियर : अलकापुरी ग्लेशियर बद्रीनाथ से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह ग्लेशियर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आप ट्रेकिंग और कैम्पिंग का आनंद ले सकते हैं।
सतोपंथ ट्रैक : सतोपंथ ट्रैक बद्रीनाथ से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह ट्रैक अपनी चुनौतीपूर्ण और रोमांचक ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आप हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।
गोविंदघाट : गोविंदघाट बद्रीनाथ से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान भगवान विष्णु को समर्पित है। यहाँ आप गोविंदघाट मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन कर सकते हैं।
घांघरिया : घांघरिया बद्रीनाथ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आप घांघरिया मंदिर में भगवान शिव के दर्शन कर सकते हैं।
फूलों की घाटी : फूलों की घाटी बद्रीनाथ से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह घाटी अपनी लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आप फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान में फूलों और पक्षियों का आनंद ले सकते हैं।
हेमकुंड : हेमकुंड बद्रीनाथ से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान भगवान विष्णु को समर्पित है। यहाँ आप हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा में भगवान विष्णु के दर्शन कर सकते हैं।
जोशीमठ : जोशीमठ बद्रीनाथ से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ आप जोशीमठ मंदिर में भगवान शिव के दर्शन कर सकते हैं।
बद्रीनाथ का अंत
कहा जाता है कि नरसिंह मंदिर का एक किनारा समय के साथ पतला होता जा रहा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि जिस दिन यह किनारा टूट जाएगा, उस दिन नर और नारायण पर्वत विलीन हो जाएंगे। ये दो पर्वत हिमालय में स्थित हैं और कहा जाता है कि कृष्ण और अर्जुन ने त्रेता युग शुरू होने से पहले यहाँ ध्यान लगाया था। नर और नारायण पर्वत के विलीन होने से बद्रीनाथ मंदिर को नहीं देखा जा सकेगा। ऐसा माना जाता है कि मंदिर एक गुफा में छिप जाएगा, जो केवल भविष्य के अवतारों को ही दिखाई देगी। इस कथा के बारे में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। हालांकि, यह एक रोचक और आकर्षक कहानी है, जो बद्रीनाथ मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाती है।
बद्रीनाथ कैसे पहुँचे?
हवाई मार्ग से
बद्रीनाथ का निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो देहरादून में स्थित है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डा दिल्ली से नियमित उड़ानों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से बद्रीनाथ तक टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है।
रेल से
बद्रीनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो बद्रीनाथ से लगभग 295 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों के साथ भारतीय रेलवे नेटवर्क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक टैक्सी या बस द्वारा पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग से
बद्रीनाथ उत्तराखंड राज्य के प्रमुख शहरों के साथ अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, ऊखीमठ, श्रीनगर, चमोली आदि से बद्रीनाथ तक बसें और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग 58 द्वारा गाजियाबाद से जुड़ा हुआ है।