जितिया हिन्दुओ एक त्यौहार है जो आश्विन महीने के सप्तमी को मनायी जाती है यह त्यौहार तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस व्रत की शुरआत नहाय-खाई से होती है व्रत के दूसरे दिन, अष्टमी तिथि को, महिलाएँ निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं। तीसरे दिन, नवमी तिथि को, महिलाएँ भगवान सूर्य की पूजा करती हैं और अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन, महिलाएँ अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। पारण के दिन नोनी का साग एवम मडुआ की रोटी खायी जाती हैं। जितिया को अलग-अलग जगह पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे जीवित्पुत्रिका व्रत, जिउतिया या जीमूतवाहन व्रत । इस व्रत को विवाहित मातायें अपनी संतान की सुरक्षा के लिए करती हैं. अष्टमी के प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है।
जितिया व्रत की कई सारी कथाएँ हैं:- जैसे चील और लोमड़ी की कथा
एक बार की बात है, नर्मदा नदी के पास हिमालय के जंगल में एक चील और एक मादा लोमड़ी रहती थीं। एक दिन, उन्होंने कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते देखा। दोनों को यह बहुत अच्छा लगा और उन्होंने भी व्रत करने का फ़ैसला लिया।
उपवास के दौरान, लोमड़ी को भूख लग गई और उसने एक मरे हुए जानवर को खा लिया। दूसरी ओर, चील ने पूरे समर्पण के साथ व्रत का पालन किया।
अगले जन्म में, दोनों ने मनुष्य रूप में जन्म लिया। चील के कई पुत्र हुए, लेकिन लोमड़ी के सभी पुत्र मर गए। इससे लोमड़ी बहुत दुखी हो गई और उसने चील से बदला लेने की ठानी। उसने चील के बच्चों को मारने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई।
एक दिन, चील ने लोमड़ी को अपने पूर्व जन्म के बारे में बताया। उसने बताया कि उसने जितिया व्रत रखा था, जिससे उसे अपने पुत्रों का कल्याण मिला। लोमड़ी ने भी जितिया व्रत रखा और उसके सभी पुत्र जीवित हो गए। इस तरह, जितिया व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध हुआ।
जितिया व्रत की कथा महाभारत से
महाभारत युद्ध में पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित था। वह पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर गया और उसने पांच लोगों की हत्या कर दी। उसे लगा कि उसने पांडवों को मार दिया लेकिन पांडव जिंदा थे। जब पांडव उसके सामने आए तो उसे पता लगा कि वह द्रौपदी के पांच पुत्रों को मार आया है। यह सब देखकर अर्जुन ने क्रोध में अश्वत्थामा को बंदी बनाकर दिव्य मणि छीन ली। अश्वत्थामा ने इस बात का बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने की योजना बनाई। उसने गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, जिससे उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया। लेकिन उस बच्चे का जन्म लेना बहुत जरूरी था। इसलिए भगवान कृष्ण ने उत्तरा के मृत बालक को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवत होने की वजह से इस तरह उत्तरा के पुत्र का नाम जीवितपुत्रिका और परीक्षित हुआ। तब से संतान की लंबी आयु के लिए जितिया व्रत किया जाने लगा।
वह क्षेत्र जहां यह मनाया जाता है
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है।
वर्तमान वर्ष में इस त्यौहार की तिथियाँ
अष्टमी तिथि की शुरुवात | 6 अक्टूबर को सुबह 6:34 |
अष्टमी तिथि की खत्म | 7 अक्टूबर को सुबह 8:08 |