देवप्रयाग
देवप्रयाग उत्तराखण्ड में कुमायूँ हिमालय के केंद्रीय क्षेत्र में टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद से नदी को ‘गंगा’ के नाम से जाना जाता है। संगम स्थल पर स्थित होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही देवप्रयाग का भी धार्मिक महत्त्व अत्यधिक है। हिन्दुओं के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक स्थलों में से देवप्रयाग एक है। देवप्रयाग को “गंगा का जन्मस्थान” भी कहा जाता है। देवप्रयाग समुद्र तल से 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका सबसे निकटतम शहर ऋषिकेश है, जो यहाँ से 70 किलोमीटर दूर है। देवप्रयाग उत्तराखंड राज्य के पंच प्रयागों में से एक है। देवप्रयाग को लेकर कई पौराणिक कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार, जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने के लिए मना लिया, तो 33 करोड़ देवी-देवता भी उनके साथ स्वर्ग से उतरे। उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया, जो गंगा की जन्म भूमि है। गढ़वाल क्षेत्र में मान्यतानुसार, भागीरथी नदी को “सास” और अलकनंदा नदी को “बहू” कहा जाता है। देवप्रयाग के मुख्य आकर्षणों में संगम के अलावा एक शिव मंदिर और रघुनाथ मंदिर हैं। रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। यहाँ का सौंदर्य अद्वितीय है। इसके निकट डांडा नागराज मंदिर और चंद्रबदनी मंदिर भी दर्शनीय हैं। देवप्रयाग को “सुदर्शन क्षेत्र” भी कहा जाता है। यहाँ कौवे नहीं दिखाई देते, जो एक आश्चर्य की बात है। यहाँ श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु की पूजा होती है।
पाँच प्रयागों में श्रेष्ठ
देवप्रयाग को पाँच प्रयागों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।पाँच प्रयाग गंगा नदी के पाँच प्रमुख संगम स्थलों का समूह है। अन्य चार प्रयाग हैं:
- हरिद्वार
- ऋषिकेश
- हरिहरपुर
- काशी
देवप्रयाग का नामकरण
देवप्रयाग को लेकर एक प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार सतयुग में देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण ने इस स्थान पर कठोर तपस्या की थी। भगवान विष्णु ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि यह स्थान उनके नाम से प्रसिद्ध होगा। तभी से इस स्थान का नाम देवप्रयाग पड़ा।
कथा
देवप्रयाग में भगवान राम की तपस्या
उत्तराखंड के देवप्रयाग में गंगा और अलकनंदा नदियों का संगम होता है। यह स्थान भगवान राम से भी जुड़ा है। मान्यता है कि रावण के वध के बाद भगवान राम ने इस स्थान पर तपस्या की थी।
कहा जाता है कि जब भगवान राम लंका विजय कर अयोध्या लौटे, तो उन्हें रावण के वध के कारण ब्रह्म हत्या का दोष लगा। ऋषि-मुनियों ने उन्हें बताया कि देवप्रयाग में तपस्या करने से उन्हें इस दोष से मुक्ति मिल सकती है।
भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। वे किसी भी दोष से मुक्त होना चाहते थे। इसलिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश का पालन किया और देवप्रयाग में तपस्या करने चले गए। उन्होंने यहाँ एक शिला पर बैठकर तपस्या की। तपस्या के दौरान उन्होंने कई कठिन परीक्षाएँ दीं। अंततः, भगवान शिव ने उनकी परीक्षा ली और उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त कर दिया। आज भी देवप्रयाग में भगवान राम की तपस्या की शिला मौजूद है। इस शिला पर भगवान राम के तप करने के निशान देखे जा सकते हैं।
अलकनंदा और भागीरथी का संगम
अलकनंदा और भागीरथी नदियाँ देवप्रयाग में एक ही धारा में मिल जाती हैं। यह संगम एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। अलकनंदा नदी का जल थोड़ा मटमैला होता है, जबकि भागीरथी नदी का जल निर्मल नीला होता है। दोनों नदियाँ एक ही धारा में मिलकर गंगा नदी का रूप लेती हैं। इस संगम को “सास-बहू” के मिलन स्थल के रूप में भी जाना जाता है। अलकनंदा नदी को “बहू” और भागीरथी नदी को “सास” कहा जाता है। अलकनंदा नदी शांत और कोमल होती है, जबकि भागीरथी नदी तेज और उग्र होती है। यह संगम दो अलग-अलग प्रकृति के मिलन का प्रतीक है। देवप्रयाग एक प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर स्थान है। यहाँ के पहाड़, नदियाँ और घाटियाँ मनमोहक हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक इस संगम के अद्भुत दृश्य को निहारने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
कब जाएँ
देवप्रयाग जाने का सबसे अच्छा समय जनवरी से जून और सितंबर से दिसम्बर के बीच होता है। इस दौरान मौसम सुहावना रहता है और पर्यटकों को भीड़भाड़ कम होती है।
कैसे पहुँचें
- सड़क मार्ग से: देवप्रयाग उत्तराखंड के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड परिवहन की बस सेवा के माध्यम से आप आसानी से देवप्रयाग पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग से: देवप्रयाग का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो लगभग 72 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश से देवप्रयाग के लिए बस या टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
- हवाई मार्ग से: देवप्रयाग का निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट है, जो देहरादून में स्थित है। जौली ग्रांट से देवप्रयाग के लिए बस या टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
दिल्ली से देवप्रयाग की दूरी
दिल्ली से देवप्रयाग की दूरी लगभग 300 किलोमीटर है। दिल्ली से देवप्रयाग जाने के लिए बस, ट्रेन या हवाई जहाज का उपयोग किया जा सकता है।