होलिका दहन
होलिका दहन का त्यौहार होली के एक दिन पूर्व मनाया जाता है। होलिका फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन प्रदोष काल में, अर्थात सूर्यास्त के बाद और चंद्रोदय से पहले, होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के ठीक अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है। होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है।
होलिका दहन के लिए, गाँव या मोहल्ले के किसी खुले स्थान पर एक चिता बनाई जाती है। चिता को सूखी लकड़ियों, गोबर और अन्य ईंधन से बनाया जाता है। इसके बाद, चिता के ऊपर गोबर से बने होलिका और भक्त प्रहलाद की प्रतिमा रखी जाती है। होलिका को बुराई का प्रतीक माना जाता है, जबकि प्रहलाद को अच्छाई का प्रतीक माना जाता है।
होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में, चिता को आग लगा दी जाती है। लोग होलिका के चारों ओर नृत्य और गायन करते हैं। होलिका दहन के बाद, लोग एक-दूसरे पर रंग और गुलाल फेंकते हैं।
होलिका दहन के पीछे एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, एक राजा हिरण्यकश्यप था, जो भगवान विष्णु का घोर विरोधी था। उसने अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु की पूजा करने से मना किया, लेकिन प्रहलाद ने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार उसे बचाया।
एक दिन, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को जलाने के लिए कहा। होलिका को आग से अग्निप्रवेश के वरदान के कारण अग्नि से नहीं जलने का वरदान था। हालांकि, जब होलिका ने प्रहलाद को अपने साथ आग में बैठाया, तो भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और प्रहलाद को बचाया। होलिका आग में जल गई और हिरण्यकश्यप को भी भगवान विष्णु ने मार दिया।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
एक बार की बात है, एक राक्षस राजा था जिसका नाम हिरण्यकश्यप था। वह भगवान विष्णु का घोर शत्रु था और अपने राज्य में सभी को उसकी पूजा करने का आदेश दिया था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह अपने पिता की पूजा करने से इंकार करता था। इससे हिरण्यकश्यप को बहुत क्रोध आता था।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की कई कोशिशें कीं, लेकिन भगवान विष्णु ने उसे बचा लिया। अंत में, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया, जिसे अग्नि से नहीं जलने का वरदान था। उसने होलिका से प्रह्लाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठने को कहा। होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई।
होलिका दहन का अर्थ होलिका दहन की कथा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह बताती है कि सच्चा भक्त हमेशा भगवान की कृपा से सुरक्षित रहता है।
होलिका दहन के दिन क्या करें
होलिका दहन की तैयारी: होलिका दहन के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। होलिका दहन के लिए सामग्री एकत्र करें, जैसे कि लकड़ी, गोबर के उपले, गेहूँ की बालियाँ, काले तिल के दाने और फूल।
होलिका दहन: होलिका दहन शुरू होने के बाद, अग्नि को प्रणाम करें और भूमि पर जल डालें। इसके बाद, होलिका दहन की सामग्री को अग्नि में डालें। फिर, अग्नि की परिक्रमा कम से कम तीन बार करें।
मनौकामनाएँ: अग्नि की परिक्रमा करने के बाद, अग्नि को प्रणाम करें और अपनी मनोकामनाएँ कहें।
तिलक: होलिका दहन की अग्नि की राख से स्वयं का और घर के लोगों का तिलक करें।
होलिका दहन का इतिहास
फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाए जाने वाले होलिका दहन के इस पर्व का इतिहास काफी पुराना है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में 300 ई.पू। समय से होलिका दहन सम्बंधित साक्ष्य मिले हैं। होलिका दहन के इस त्यौहार से जुड़ी कई सारी पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से दो सबसे अधिक प्रचलित हैं।
प्रथम कथा
प्रथम कथा के अनुसार, सतयुग काल में हिरणकश्यप नामक एक बहुत ही क्रूर शासक हुआ करता था। वह भगवान विष्णु का घोर शत्रु था और अपने राज्य में सभी को उसकी पूजा करने का आदेश दिया था। उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह अपने पिता की पूजा करने से इंकार करता था। इससे हिरणकश्यप को बहुत क्रोध आता था।
हिरणकश्यप ने प्रहलाद को मारने की कई कोशिशें कीं, लेकिन भगवान विष्णु ने उसे बचा लिया। अंत में, हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया, जिसे अग्नि से नहीं जलने का वरदान था। उसने होलिका से प्रहलाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठने को कहा। होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका जल गई।
इस घटना से हिरणकश्यप बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रहलाद को मारने के लिए एक और योजना बनाई। उसने प्रहलाद को एक लोहे के खंभे से बाँधकर उसे एक शेर के सामने छोड़ दिया। लेकिन भगवान विष्णु ने प्रहलाद को बचा लिया। एक शेर ने हिरणकश्यप को मार डाला।हिरणकश्यप के वध के बाद, प्रहलाद ने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा शुरू की। तब से बुराई पर अच्छाई की जीत को देखते हुए होलिका दहन मनाने की प्रथा शुरू हुई।
दूसरी कथा
दूसरी कथा के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन घोर तपस्या में लीन भगवान शिव ने उनके तरफ ध्यान ही नहीं दिया। तब भगवान शिव का ध्यान भंग करने के लिए स्वंय प्रेम के देवता कामदेव सामने आए और उन्होंने भगवान शिव पर पुष्प बाड़ चला दिया। अपनी तपस्या भंग होने से शिवजी काफी क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया।
अगले दिन क्रोध शांत होने पर कामदेव की पत्नी रति की विनती पर भगवान शिव ने कामदेव को फिर से जीवित कर दिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव के भस्म होने कारण से होलिका दहन के त्यौहार की उत्पत्ति हुई और अगले दिन उनके जीवित होने के खुशी में होली का पर्व मनाया जाने लगा।
वर्तमान वर्ष में होलिका दहनत्यौहार की तिथि
2024 में, होलिका दहनका त्यौहार 24 मार्च सोमवार को मनाया जाएगा।