चैत्र नवरात्रि
चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है जो हर साल चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है। इस त्यौहार में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं।
पहले दिन, माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है, शैलपुत्री का अर्थ है “पहाड़ों की पुत्री”। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि माँ दुर्गा पर्वतों के राजा, हिमालय के घर पैदा हुई थीं। माँ शैलपुत्री को शांति और समृद्धि की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
दूसरे दिन, माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, ब्रह्मचारिणी का अर्थ है “तप करने वाली”। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि माँ दुर्गा ने महिषासुर से युद्ध करने के लिए कठोर तपस्या की थी। माँ ब्रह्मचारिणी को तप और ज्ञान की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
तीसरे दिन, माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है,। चंद्रघंटा का अर्थ है “चांद की तरह चमकने वाली”। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि माँ दुर्गा के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। माँ चंद्रघंटा को विद्या और बुद्धि की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
चौथे दिन, माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है, कूष्माण्डा का अर्थ है “संसार की जननी”। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि माँ दुर्गा ने सृष्टि के निर्माण के लिए अपनी मंद, हल्की हंसी से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था। माँ कूष्माण्डा को ऊर्जा और सर्जन की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को ऊर्जा, शक्ति और सृजनात्मकता की प्राप्ति होती है।
पांचवें दिन, माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है, स्कंदमाता का अर्थ है “कार्तिकेय की माता”। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि माँ दुर्गा भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की माता हैं। माँ स्कंदमाता को संतान सुख की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है।
छठे दिन, माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है, एक कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्री के रूप में दर्शन दिए। महर्षि कात्यायन ने अपनी पुत्री का नाम कात्यायनी रखा। चूंकि महर्षि कात्यायन ने ही सबसे पहले माँ दुर्गा के इस रूप की पूजा की थी, अतः वे कात्यायनी के नाम से भी जानी जाती हैं। कात्यायनी माता को ज्ञान, बुद्धि और विवेक की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को इन सभी गुणों की प्राप्ति होती है।
सातवें दिन, माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है, जो राक्षसों का संहार करने वाली हैं। कालरात्रि माता का अर्थ है “काल का नाश करने वाली”। नवरात्रि के सातवें दिन उनकी पूजा की जाती है। कालरात्रि माता को सर्वशक्तिमान माना जाता है। वह समस्त बाधाओं और दुष्टों का नाश करने वाली हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को भयमुक्त और माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
नवरात्रि के आठवें दिन माँ दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा की जाती है। महागौरी का अर्थ है “सफेद रंग वाली मां”। वह सभी नौ रूपों में सबसे सुंदर मानी जाती हैं। उनका शरीर दूधिया सफेद है और वे कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके चार हाथों में त्रिशूल, डमरू, कमल और वरमुद्रा है। महागौरी माता को कोमल, करुणा से परिपूर्ण और आशीर्वाद देने वाली देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। महागौरी माता की कथा एक कथा के अनुसार, भगवान शिव के तप से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने महागौरी रूप धारण किया। उन्होंने अपने शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोया, जिससे उनका शरीर दूधिया सफेद हो गया। इस प्रकार वे महागौरी कहलाईं।
नौवें दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की पूजा की जाती है। सिद्धिदात्री का अर्थ है “सभी सिद्धियों को देने वाली”। वह माँ दुर्गा का नौवां और अंतिम रूप हैं। सिद्धिदात्री माता को सभी सिद्धियों की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, जैसे कि अमृतत्व, शांति, ज्ञान, शक्ति और धन।
कब रखा जाता है चैत्र नवरात्रि का व्रत?
चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है जो हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है और नवमी तिथि को समाप्त होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, चैत्र नवरात्रि आमतौर पर मार्च या अप्रैल में होती है।
चैत्र नवरात्रि क्यों मनाते हैं
कथा के अनुसार, महिषासुर नामक एक राक्षस था जिसे ब्रह्मा जी ने अमर होने का वरदान दिया था। इस वरदान के कारण वह धरती से लेकर स्वर्ग लोक तक हर किसी को परेशान कर रहा था। देवताओं ने महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुँचे। तीनों देवताओं ने मिलकर आदि शक्ति का आह्वाहन किया। भगवान शिव और विष्णु के क्रोध और अन्य देवताओं से मुख से एक तेज प्रकट हुआ, जो नारी के रूप में बदल गया। ऐसे माँ दुर्गा प्रकट हुई। देवताओं ने माँ दुर्गा को अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। फिर माँ दुर्गा ने महिषासुर को ललकारा। पूरे 9 दिनों तक युद्ध चलने के बाद दसवें दिन माँ ने महिषासुर का वध कर दिया। माना जाता है कि इन नौ दिनों में माँ ने नौ स्वरूपों को धारण करके राक्षसों से वध किया था। इसी के कारण इसे नौ दिनों का नवरात्रि के रूप में मनाते हैं। इसके अलावा, चैत्र नवरात्रि हिंदू नववर्ष का भी प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर लोग माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
चैत्र नवरात्रि नौ दिनों तक क्यों मनाते हैं?
शास्त्रों के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए देवताओं ने माँ दुर्गा को नौ रूपों में प्रकट होने का आह्वान किया था। माता दुर्गा ने चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक नौ रूपों में प्रकट होकर महिषासुर का वध किया था। इसी कारण चैत्र नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
मां दुर्गा के नौ रूपों
- शैलपुत्री
- ब्रह्मचारिणी
- चंद्रघंटा
- कुष्मांडा
- स्कंदमाता
- कात्यायनी
- कालरात्रि
- महागौरी
- सिद्धिदात्री
नवरात्रि में क्यों की जाती है कलश स्थापना?
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि किसी भी शुभ काम या फिर मांगलिक कार्य में कलश स्थापना करने सुख-समृद्धि आती है और धन धान्य की भी कमी नहीं होती है। कलश को देवी-देवता, तीर्थ स्थान, तीर्थ नदियों आदि का प्रतीक माना जाता है। कलश में मुख में विष्णु जी, कंठ में शिव जी और मूल में ब्रह्मा जी निवास करते हैं। इसके साथ ही कलश के मध्य में दैवीय मातृ शक्तियाँ निवास करती हैं।
चैत्र नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाने का महत्त्व
नवरात्रि के दौरान, लोग अपने घरों में अखंड ज्योति जलाते हैं। अखंड ज्योति एक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है जिसका उद्देश्य माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करना है। अखंड ज्योति जलाने के महत्त्व अखंड ज्योति जलाने से माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है आध्यात्मिक विकास होता है और व्यक्ति में सकारात्मक सोच विकसित होती है।
चैत्र नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्त्व नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्त्व है। मान्यता है कि कन्याओं को नवरात्रि में माँ दुर्गा का रूप माना जाता है। इसलिए कन्या पूजन करने से माँ दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
चैत्र नवरात्रि के दौरान, लोग अष्टमी या नवमी तिथि को कन्या पूजन करते हैं।
- मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करना: कन्या पूजन से माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- शुद्धि और पवित्रता: कन्याओं को माँ दुर्गा का रूप माना जाता है। इसलिए, कन्या पूजन से घर में शुद्धता और पवित्रता आती है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार: कन्या पूजन से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- अवतार का स्मरण: कन्या पूजन से माँ दुर्गा के नौ अवतारों का स्मरण होता है।
कन्या पूजन विधि
- कन्याओं का चरण धोएँ। कन्याओं के चरण धोने से पापों का शमन होता है।
- कन्याओं को तिलक लगाएँ और पंक्तिबद्ध बैठाएँ।
- कन्याओं के हाथों में मोली बाँधें और उनके चरणों में पुष्प अर्पित करें।
- कन्याओं को पूड़ी, हलवा, चना, आदि का भोजन परोसें।
- कन्याओं को मिष्ठान, केला और प्रसाद दें।
- कन्याओं को कुछ पैसे और वस्त्र का दान करें।
- कन्याओं की आरती करें और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्त्व
नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्त्व निम्नलिखित है:
- आत्मा का जागरण: नवरात्रि के नौ दिनों में, लोग माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। इन नौ रूपों को विभिन्न आध्यात्मिक गुणों का प्रतीक माना जाता है। माँ दुर्गा के इन रूपों की पूजा करने से व्यक्ति की आत्मा में जागरण होता है और वह अपने आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ता है।
- बुराई पर अच्छाई की जीत: नवरात्रि में, लोग माँ दुर्गा की पूजा करके महिषासुर नामक राक्षस का वध करने की कथा का स्मरण करते हैं। यह कथा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। नवरात्रि के दौरान, लोग अपने जीवन में बुराई और अज्ञानता को दूर करने और अच्छाई और ज्ञान को बढ़ावा देने का संकल्प लेते हैं।
- शरीर और मन का शुद्धीकरण: नवरात्रि के दौरान, लोग व्रत-उपवास, ध्यान और योग जैसे विभिन्न आध्यात्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं। इन अनुष्ठानों से व्यक्ति का शरीर और मन शुद्ध होता है और वह आध्यात्मिक रूप से विकसित होता है।
वर्तमान वर्ष 2024 में चैत्र नवरात्रि की तिथि
चैत्र नवरात्रि 09 अप्रैल 2024, दिन मंगलवार से प्रारंभ होगी और 17 अप्रैल 2024 दिन बुधवार को समाप्त होगी।