गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण त्यौहार है, जो आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन को व्यास पूर्णिमा और वेद व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार, गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेदव्यास का जन्मदिन मनाया जाता है। इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों की रचना की थी, जिसके कारण उनका नाम वेदव्यास पड़ा। भारतीय संस्कृति में गुरुओं को हमेशा से ही विशेष स्थान प्राप्त रहा है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक, समाज के निर्माण में गुरुओं की भूमिका को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। संत कबीरदास ने अपने दोहे के माध्यम से भी गुरुओं की महिमा का वर्णन किया है।
कबीर के दोहे में गुरु की महिमा
संत कबीरदास ने अपने दोहों में गुरु की महिमा का वर्णन किया है। वे गुरु को ईश्वर के समकक्ष मानते हैं। उनके अनुसार, गुरु ही शिष्य को अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाते हैं और उसे ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाते हैं।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
इस दोहे में कबीरदास कहते हैं कि गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए? उनका उत्तर है कि गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए। क्योंकि गुरु के बिना भगवान को पाना असंभव है। गुरु ही शिष्य को भगवान के दर्शन का मार्ग दिखाते हैं।
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
इस दोहे में कबीरदास कहते हैं कि गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता है। जब तक गुरु की कृपा प्राप्त नहीं होती, तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता रहता है। गुरु के ज्ञान से ही मनुष्य को मोक्ष मिलता है।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष।
इस दोहे में कबीरदास कहते हैं कि गुरु के बिना सत्य और असत्य का भेद नहीं पता चलता है। गुरु के बिना मनुष्य के दोष दूर नहीं होते हैं। गुरु के ज्ञान से ही मनुष्य को सत्य का मार्ग मिलता है और उसके दोष दूर होते हैं।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन से जगत गुरु भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग सिखाना शुरू किया था। इस दिन को गुरु शिष्य परंपरा का भी प्रतीक माना जाता है।
महात्मा गांधी ने भी दी श्रद्धांजलि
आधुनिक दौर में, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचंद्र को श्रद्धांजलि देने के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन चुना था।
नेपाल और भूटान में भी मनाया जाता है
गुरु पूर्णिमा का त्यौहार भारत ही नहीं, बल्कि नेपाल और भूटान में भी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। नेपाल में गुरु पूर्णिमा को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बौद्ध धर्म में भी विशेष महत्त्व
बौद्ध धर्म को मानने वाले गुरु पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की याद में मनाते हैं। इनकी मान्यता के अनुसार, भगवान बुद्ध ने इसी दिन उत्तर प्रदेश के सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। मान्यता है कि इसके बाद ही बौद्ध धर्म की शुरुआत हुई थी।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन से जगत गुरु भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग सिखाना शुरू किया था। इस दिन को गुरु शिष्य परंपरा का भी प्रतीक माना जाता है।
महात्मा गांधी ने भी दी श्रद्धांजलि
आधुनिक दौर में, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचंद्र को श्रद्धांजलि देने के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन चुना था।
नेपाल और भूटान में भी मनाया जाता है
गुरु पूर्णिमा का त्यौहार भारत ही नहीं, बल्कि नेपाल और भूटान में भी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। नेपाल में गुरु पूर्णिमा को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बौद्ध धर्म में भी विशेष महत्त्व
बौद्ध धर्म को मानने वाले गुरु पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की याद में मनाते हैं। इनकी मान्यता के अनुसार, भगवान बुद्ध ने इसी दिन उत्तर प्रदेश के सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। मान्यता है कि इसके बाद ही बौद्ध धर्म की शुरुआत हुई थी।
गुरु के महत्त्व का वर्णन
गुरु के लिए एक मंत्र है:
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा: गुरु साक्षात परम ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नम:।
इस मंत्र का अर्थ है:
हे गुरु, आप देवताओं के समान हैं। आप ही भगवान ब्रह्मा हैं, आप ही भगवान विष्णु हैं और आप ही महेश हैं। आप देवताओं के देवता हैं। हे गुरुवर! आप सर्वोच्च प्राणी हैं। मैं नतमस्तक होकर आपको नमन करता हूँ। इस मंत्र से स्पष्ट है कि गुरु को भगवान के समान माना जाता है। गुरु ही शिष्य को ज्ञान, दर्शन और जीवन जीने का सही मार्ग दिखाते हैं। गुरु के बिना शिष्य का जीवन अंधकारमय होता है।
गुरु शब्द का अर्थ
गुरु शब्द ‘गु’ और ‘रु’ से मिलकर बना है। इसमें ‘गु’ का अर्थ अंधकार, अज्ञान से है तो वहीं ‘रु’ का अर्थ दूर करना या हटाना है। इस तरह से गुरु वह है जो हमारे जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं और हमें ज्ञानी बनाते हैं। गुरु से ही जीवन में ज्ञान की ज्योति से सकारात्मकता आती है।
गुरु पूर्णिमा का महत्त्व
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा की जाती है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं को फूल, माला, दक्षिणा आदि अर्पित करते हैं और उनके आशीर्वाद लेते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं के बारे में कथाएँ सुनाई जाती हैं और उन्हें सम्मानित किया जाता है। गुरु पूर्णिमा का यह त्यौहार हमें गुरु के महत्त्व को याद दिलाता है। गुरु ही हमारे जीवन को प्रकाशित करते हैं और हमें सही मार्ग पर ले जाते हैं। गुरु पूर्णिमा का दिन गुरुओं के सम्मान और आदर का दिन है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं को फूल, माला, दक्षिणा आदि अर्पित करते हैं और उनके आशीर्वाद लेते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं के बारे में कथाएँ सुनाई जाती हैं और उन्हें उनके ज्ञान और योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है। गुरु पूर्णिमा का महत्त्व निम्नलिखित है:
गुरुओं के सम्मान और आदर
गुरु पूर्णिमा का दिन गुरुओं के सम्मान और आदर का दिन है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं को फूल, माला, दक्षिणा आदि अर्पित करते हैं और उनके आशीर्वाद लेते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं के बारे में कथाएँ सुनाई जाती हैं और उन्हें उनके ज्ञान और योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है।
ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक
गुरु पूर्णिमा ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उसे अज्ञानता के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु पूर्णिमा का दिन हमें गुरु के महत्त्व को याद दिलाता है और हमें ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
कुंडली में गुरु दोष समाप्त होता है
ज्योतिष के अनुसार, गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने से कुंडली में गुरु दोष समाप्त होता है। गुरु दोष के कारण व्यक्ति को शिक्षा, करियर, विवाह आदि में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने से इन बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
गुरु पूर्णिमा की शुरुआत कैसे हुई?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुरु पूर्णिमा की शुरुआत महर्षि वेद व्यास के 5 शिष्यों द्वारा की गई थी। महर्षि वेद व्यास को हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। वे महाभारत, 18 महापुराण, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भगवद्गीता आदि ग्रंथों के रचयिता हैं। कहा जाता है कि आषाढ़ माह के दिन ही महर्षि वेद व्यास ने अपने शिष्यों और ऋषि-मुनियों को श्री भागवत पुराण का ज्ञान दिया था। उनके शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने और इस दिन गुरु पूजन करने की परंपरा की शुरुआत की।
वेदव्यासजी बने प्रथम गुरु
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इस दिन को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वेदव्यास को हिंदू धर्म में प्रथम गुरु माना जाता है। उन्होंने मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। वेदों को हिंदू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है। वेदों में जीवन के सभी पहलुओं का ज्ञान दिया गया है।
महर्षि वेदव्यास का जन्म महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र के रूप में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। वे एक कुशल विद्वान और ऋषि थे। उन्होंने महाभारत, 18 पुराण, श्रीमद्भगवद्गीता आदि ग्रंथों की रचना की।
महर्षि वेदव्यास ने अपने ज्ञान और योगदान के लिए हिंदू धर्म में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। वे मानव जाति के प्रथम गुरु हैं। उन्होंने मानव जाति को ज्ञान और प्रकाश का मार्ग दिखाया है।
2024 में गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई दिन रविवार को मनाई जायेगी।