भारत में हर साल मार्च-अप्रैल के महीने में जब वसंत की बयार चलती है और प्रकृति नई कोंपलें उगाती है, तब कई राज्यों में हिंदू नववर्ष का स्वागत बड़े उल्लास के साथ किया जाता है। यह पर्व न सिर्फ एक नए कैलेंडर वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि नई उम्मीदों, समृद्धि और सकारात्मक बदलाव की भी सौगात लाता है।
इस बार गुड़ी पड़वा और उगादी का पर्व 30 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। महाराष्ट्र और गोवा में इसे गुड़ी पड़वा के रूप में जाना जाता है, जबकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के लोग इसे उगादी के तौर पर मनाते हैं। पश्चिम बंगाल में यही दिन ‘पोइला बोइशाख’ के रूप में मनाया जाता है। भले ही इन पर्वों के नाम अलग-अलग हों, लेकिन भावनाएँ एक जैसी हैं—नई शुरुआत, घर-परिवार की खुशहाली और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव।
उगादी शब्द की जड़ें संस्कृत के ‘युगादि’ शब्द में हैं, जिसका अर्थ है ‘युग की शुरुआत’। यह दिन इसलिए भी खास माना जाता है क्योंकि मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन दुनिया की रचना की थी। ऐतिहासिक रूप से भी, 12वीं शताब्दी के महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने उगादी को नववर्ष की शुरुआत के रूप में मान्यता दी थी।
इस अवसर पर लोग पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ दिन की शुरुआत करते हैं। तेल स्नान करने के बाद नीम के पत्ते, गुड़ और इमली से बनी विशेष मिठाई ‘उगादी पचड़ी’ का सेवन किया जाता है, जो जीवन के अलग-अलग स्वादों—खट्टा, मीठा, कड़वा—का प्रतीक है। घरों में रंगोली सजाई जाती है, दरवाजों पर आम और नीम के पत्तों के तोरण लगाए जाते हैं, नए कपड़े पहने जाते हैं और शुभकामनाएँ दी जाती हैं।
चेन्नई के श्री कन्याका परमेश्वरी आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज फॉर विमेन की छात्राओं ने भी शुक्रवार को पारंपरिक पोशाकों में उगादी का जश्न मनाते हुए एक-दूसरे के साथ खुशियों की तस्वीरें साझा कीं। यह नजारा दिखाता है कि कैसे यह पर्व अलग-अलग समुदायों को एकजुट करता है और समाज में आपसी प्रेम, भाईचारे और सांस्कृतिक समृद्धि की भावना को बढ़ावा देता है।
आज के समय में, जब भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग खुशियों के छोटे-छोटे पल ढूँढ रहे हैं, ऐसे में यह त्यौहार हमें रुककर जीवन की खूबसूरती और अपने परिवार व परंपराओं के साथ जुड़ने का बहाना देता है। यह सिर्फ कैलेंडर में तारीख बदलने का दिन नहीं है, बल्कि अपने भीतर नए संकल्प, नई ऊर्जा और सकारात्मकता भरने का दिन है।