चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन देवी महागौरी को समर्पित होता है, जिन्हें देवी दुर्गा के अष्टम रूप के रूप में पूजा जाता है। 2025 में यह विशेष दिन 5 अप्रैल को मनाया जा रहा है, जिसे ‘महाष्टमी’ कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, महागौरी माता शांति, पवित्रता और सौम्यता की देवी हैं। इनकी आराधना से जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। देवी ने कठोर तपस्या कर गौर वर्ण प्राप्त किया था, इसलिए इन्हें उज्जवला स्वरूप भी कहा जाता है।
महागौरी माता का स्वरूप अत्यंत दिव्य और शांत है। वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, उनके वाहन वृषभ हैं और उनके चार भुजाओं में त्रिशूल, डमरू, अभय और वर मुद्रा है। इनका ध्यान करने से शारीरिक, मानसिक और सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। महाष्टमी के दिन भक्त विशेष श्रद्धा और भक्ति से पूजा-अर्चना करते हैं और कन्या पूजन का आयोजन भी करते हैं, जिसे विशेष पुण्यदायी माना जाता है।
इस पावन अवसर पर भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनते हैं और विधिपूर्वक महागौरी माता की पूजा करते हैं। सबसे पहले कलश की पूजा की जाती है, फिर मां को पुष्प, सिंदूर, कुमकुम, नारियल, अक्षत और भोग अर्पित किया जाता है। गुलाबी रंग की मिठाई विशेष रूप से चढ़ाई जाती है। इसके बाद दीपक और धूप जलाकर दुर्गा चालीसा, महागौरी स्तुति, ध्यान मंत्र और आरती का पाठ किया जाता है। अंत में माता से भूल-चूक के लिए क्षमा मांगकर आशीर्वाद लिया जाता है।
महाष्टमी की पूजा विशेष मुहूर्त में की जाती है। इस वर्ष प्रातः पूजा का समय 4:35 से 6:07 तक, अभिजीत मुहूर्त 11:59 से 12:49 तक और संध्या पूजा का समय 6:40 से 7:50 बजे तक है। इन शुभ समयों में पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
आज के दिन, जब पूरी दुनिया आधुनिकता की ओर दौड़ रही है, ऐसे में भारतीय संस्कृति की जड़ें आज भी गहराई से जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि जैसे पर्व न केवल धार्मिक उत्सव हैं, बल्कि आत्मचिंतन, साधना और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर भी प्रदान करते हैं। मां महागौरी का स्मरण करते हुए हम सभी उनके शुभाशीर्वाद से अपने जीवन को पवित्र और सकारात्मक बना सकते हैं।