🚨 असली हड़ताल: कैसे ‘भारत बंद’ के नाम पर भारत को तोड़ने की साज़िश रची गई
आज — 9 जुलाई 2025
25 करोड़ से ज़्यादा मज़दूर, कर्मचारी और सरकारी कर्मचारी काम पर नहीं हैं।
सड़कें सुनसान हैं, बैंक बंद हैं, रेलवे ट्रैक पर प्रदर्शनकारी बैठे हैं, और मीडिया चिल्ला रहा है — “ये है भारत के मेहनतकश वर्ग की आवाज़।”
लेकिन एक सवाल पूछिए — क्या ये वाकई आवाज़ है… या कोई स्क्रिप्ट?
ये कोई सामान्य हड़ताल नहीं है। ये एक मनोवैज्ञानिक हमला है — ऐसा हमला जो भारत की स्थिरता को हिला सके, आपकी आस्था को खामोश कर सके, और राष्ट्र को अराजकता में धकेल सके।
और इस स्क्रिप्ट में असली कलाकार नहीं, बल्कि मासूम मज़दूर हैं — जिन्हें मोहरे बना दिया गया है।

सुबह 10 बजे की लाइव स्थिति:
- 📍 गुजरात: 20,000 बैंक कर्मचारी हड़ताल में, ₹15,000 करोड़ का कारोबार रुका
- 📍 कोलकाता: बैंक बंद, मेट्रो और बसें चालू लेकिन भारी सुरक्षा में
- 📍 केरल: KSRTC बसें सुरक्षा के बीच चल रही हैं
- 📍 ओडिशा: भुवनेश्वर के पास सड़कें अवरुद्ध
- 📍 बिहार: राहुल गांधी के नेतृत्व में महागठबंधन ने अलग ‘बिहार बंद’ घोषित किया, टायर जलाए जा रहे हैं
ये बंद नहीं है — ये एक रिहर्सल है। एक परीक्षण कि भारत को बिना गोली चलाए कैसे रोका जाए।
प्रश्न ये नहीं है कि कौन बंद में शामिल है — प्रश्न है कि स्क्रिप्ट किसकी है?
हम ये रिपोर्ट नहीं कर रहे। हम चेतावनी दे रहे हैं।
क्योंकि जब बैंक बंद हों, ट्रेनें रुकी हों, बच्चे स्कूल ना जा पाएं, और सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड कर रहे हों — तब असली मास्टरमाइंड एसी कमरों में बैठकर ‘क्रांति’ का तमाशा देख रहे होते हैं।
📉 पैटर्न सामने है
अगर आपने पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं को ध्यान से देखा है, तो आज का भारत बंद कोई चौंकाने वाला दृश्य नहीं है।
हर बार जब भारत आगे बढ़ने लगता है — कोई न कोई “बंद”, “प्रदर्शन”, “आंदोलन” अचानक प्रकट हो जाता है।
2019: शाहीन बाग।
2020: किसान आंदोलन।
2025: भारत बंद।
सभी में एक कॉमन स्क्रिप्ट है:
✔️ वास्तविक पीड़ा को पकड़ो
✔️ NGO और एक्टिविस्ट जोड़ो
✔️ मीडिया को इन्वाइट करो
✔️ सरकार को फंसाओ
✔️ भारत को बदनाम करो
“डिजिटल मीडिया में बाढ़ लाओ। सत्ता को प्रतिक्रिया देने पर मजबूर करो। 12 घंटे में अंतर्राष्ट्रीय बना दो।”
— 2020 टूलकिट से लीक हुई रणनीति
आज का भारत बंद उसी स्क्रिप्ट का अगला अध्याय है।
- 🚆 बंगाल: रेलवे ट्रैक पर बैनर और भीड़
- 🛣️ ओडिशा: हाईवे अवरुद्ध, पथराव की आशंका
- 🔥 बिहार: विपक्ष समर्थित टायर जलाए जा रहे
- 🏙️ बेंगलुरु: फ्रीडम पार्क में ‘वर्किंग क्लास’ शो

🎯 टूलकिट का फॉर्मूला
- 1️⃣ पीड़ित वर्ग का चयन करो (कभी किसान, कभी मज़दूर, कभी छात्र)
- 2️⃣ विदेशी फंडिंग से NGO खड़ा करो
- 3️⃣ हैशटैग, पोस्टर, सोशल मीडिया मैसेज पहले से तैयार रखो
- 4️⃣ यातायात रोक दो, अर्थव्यवस्था को जाम कर दो
- 5️⃣ जब सरकार प्रतिक्रिया दे — “तानाशाही” का नारा दो
- 6️⃣ मामला अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक पहुँचाओ
यह आंदोलन नहीं — डिज़ाइन है।
और इस डिज़ाइन का लक्ष्य है — भारत को थकाना, तोड़ना, और रोकना।
जो दिखता है — वो आंदोलन है।
जो नहीं दिखता — वही षड्यंत्र है।
🧨 धन और साज़िश का गठजोड़
किसी भी आंदोलन को जमीनी ताकत से नहीं, धन और नेटवर्क से खड़ा किया जाता है।
तो सवाल उठता है — 25 करोड़ कर्मचारियों की इस ‘हड़ताल’ के पीछे पैसा कहां से आया?
उत्तर है: एक अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ — जिसमें शामिल हैं:
- 🌍 विदेश में स्थित तथाकथित ‘मानवाधिकार’ फाउंडेशन
- 📡 मीडिया फेलोशिप्स जो भारत विरोधी नैरेटिव फैलाते हैं
- 🏴 भारत में पंजीकृत लेकिन विदेशी एजेंडा चलाने वाले NGOs
- 📲 सोशल मीडिया टूलकिट नेटवर्क, जो स्क्रिप्ट और हैशटैग मुहैया कराते हैं
- 🎭 राजनीतिक दलों के “छद्म” संगठन जो इन्हें स्थानीय चेहरा देते हैं
और ये सब होता है ‘न्याय’, ‘मज़दूर अधिकार’, ‘संविधान’ जैसे शब्दों की आड़ में।

💸 पैसा कैसे घूमता है?
- 1️⃣ विदेशी संस्था एक ट्रस्ट को फंड करती है
- 2️⃣ ट्रस्ट उस पैसे को “कर्मचारी जागरूकता अभियान” के नाम पर एक NGO को देता है
- 3️⃣ NGO मजदूर यूनियन को ट्रेनिंग, सामग्री, और “डिजिटल समर्थन” देता है
- 4️⃣ उसी पैसे से प्रदर्शन की व्यवस्था होती है — बसें, पोस्टर, खाना, मीडिया कॉलआउट्स
- 5️⃣ मीडिया कवरेज मिलते ही विदेशी संस्था फिर नई ग्रांट जारी करती है — और चक्र चलता रहता है
यह एक आंदोलन नहीं, एक इंफ्रास्ट्रक्चर है — भारत के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध का।
और इस युद्ध का मुख्य सेनापति कौन है?
विपक्षी दल — वही जिनकी राजनीति जनादेश से बाहर हो चुकी है, लेकिन जो भारत विरोधी नेटवर्क के ज़रिए सत्ता तक लौटने की नई चालें चल रहे हैं।
वे इन NGOs और यूनियनों को सिर्फ समर्थन नहीं देते — योजना बनाते हैं, फंड जारी करते हैं, और नैरेटिव लिखते हैं।
और जब योजना चलती है, तब ये बयान आता है:
“हम प्रदर्शन का समर्थन करते हैं — लेकिन यह जनता की आवाज़ है।”
— विपक्षी पार्टी प्रवक्ता, 2025
असल में — ये जनता की नहीं,
जनता को मोहरा बनाने वाली राजनीति की आवाज़ है।
जब वोट नहीं मिलते,
तब सड़कों पर आग लगती है।
जब संसद में आवाज़ नहीं होती,
तब टूलकिट से शोर मचता है।
🔥 अंतिम वार: टारगेट आप हैं
अब जब योजना स्पष्ट हो चुकी है — अगला सवाल यही उठता है:
इस सबका असली निशाना कौन है?
उत्तर सीधा है — आप।
जो हर सुबह ईमानदारी से काम पर जाता है।
जो मंदिर में दीप जलाता है।
जो दूधवाले से लेकर धोबी तक को सम्मान देता है।
जो कभी किसी प्रदर्शन में शामिल नहीं हुआ — लेकिन हर हड़ताल का खामियाजा भुगतता है।
अब टारगेट आप हैं — क्योंकि आप संविधान मानते हैं,
देश से प्रेम करते हैं,
और धर्म के अनुसार जीते हैं।

🔒 ‘शांतिपूर्ण विरोध’ का असली रूप
एक धार्मिक हिंदू परिवार जिसने बंद के दिन दुकान खोली — उस पर पथराव हुआ।
बेटे को ‘सांप्रदायिक भड़काऊ’ बता कर हिरासत में ले लिया गया।
पुलिस ने मीडिया कैमरों के सामने चुप्पी ओढ़ ली।
सुनने में कट्टर लगता है?
लेकिन राम नवमी पर यही हुआ था — कई राज्यों में शोभायात्रा रोक दी गई थी “संवेदनशीलता” के नाम पर।
अगर आपने अभी भी सोचा कि “भारत बंद” सिर्फ हड़ताल है —
तो आप टूलकिट की अगली प्रयोगशाला बन सकते हैं।
🧠 प्लेबुक का अंत नहीं — अगली शुरुआत
यह भारत बंद आखिरी नहीं है — यह प्रोटोटाइप है।
ये परीक्षण है — कितना बड़ा नैरेटिव चलाया जा सकता है,
कितनी जल्दी डिजिटल भीड़ खड़ी की जा सकती है,
और कितनी देर में भारत की अर्थव्यवस्था रुक सकती है।
अगर हम चुप रहे —
तो अगली बार स्कूलों पर हमला होगा,
फिर मंदिरों पर,
फिर आपके घरों पर।
वे गोली नहीं चलाएंगे — वे ‘प्रदर्शन’ करेंगे।
वे तलवार नहीं निकालेंगे — वे ‘हड़ताल’ करेंगे।
लेकिन अंत में — देश रुकेगा, झुकेगा, टूटेगा।
⚔️ अब विकल्प आपके हाथ में है
या तो आप तमाशबीन बने रहें —
टीवी पर ‘हड़ताल’ देखें, घर में बिजली, दूध और बैंकिंग न हो, और फिर सरकार को दोष दें।
या फिर — संगठित हों।
जाग्रत नागरिक बनें।
रामराज्य महासंघ से जुड़ें — उस राष्ट्र निर्माण के लिए जो धर्म, शौर्य और संविधान की रक्षा करता है।
क्योंकि अगली बार वे आएंगे — और इस बार दरवाज़ा आपके घर का होगा।
🚩 जय श्रीराम। भारत माता की जय।
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