शारदा पीठ: कश्मीर का प्राचीन शक्तिपीठ
कश्मीर में कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें से एक शारदा पीठ है। यह मंदिर देवी सरस्वती को समर्पित है और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित है। शारदा पीठ की स्थापना 237 ईसवी पूर्व हुई थी।यहाँ शिक्षा और ज्ञान का एक प्रमुख केंद्र था और यहाँ से कई विद्वान और दार्शनिक निकले। 1947 में भारत के विभाजन के बाद, शारदा पीठ पाकिस्तान के नियंत्रण में आ गया। इस दौरान मंदिर को काफी नुकसान हुआ और आज यह खंडहर में तब्दील हो गया है।
शारदा पीठ कश्मीरी पंडितों के लिए एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर उनके लिए आस्था और विश्वास का प्रतीक है। कश्मीरी पंडित लंबे समय से इस मंदिर के जीर्णोद्धार की मांग कर रहे हैं। हाल ही में, भारत सरकार ने शारदा पीठ के जीर्णोद्धार के लिए एक परियोजना शुरू की है। इस परियोजना के पहले चरण को पूरा कर लिया गया है और मंदिर अब जनता के लिए फिर से खुल गया है। शारदा पीठ एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है। यह मंदिर कश्मीर के समृद्ध इतिहास और संस्कृति की याद दिलाता है।
यह उम्मीद है कि इस मंदिर के जीर्णोद्धार से कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में मदद मिलेगी। शारदा पीठ का मंदिर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में शारदा नामक स्थान पर किशनगंगा नदी (नीलम नदी) के किनारे स्थित है। यह मंदिर भारत-पाक नियंत्रण रेखा के निकट स्थित है और इस पर भारत का अधिकार है। मंदिर के आसपास का इलाका बहुत सुंदर और मनोरम है। यह भारत-पाक नियंत्रण रेखा के निकट है और इस पर भारत का अधिकार है। शारदा पीठ मुजफ्फराबााद से 140 किलोमीटर और कुपवाड़ा से 30 किलोमीटर दूर है। शारदा पीठ मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक था, लेकिन यह मंदिर 2400 साल पुराना है और प्रमुख शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। शारदा शक्तिपीठ कश्मीर के मार्तण्ड सूर्यमंदिर जैसा है जिसका निर्माण राजा ललितादित्य ने करवाया था।
शारदा पीठ मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने देवी सती की मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर तांडव किया था, तो सती का दाहिना हाथ कश्मीर स्थित शारदा पीठ में गिरा था। इस स्थान को देवी शक्ति के 18 महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने सती के शव को लेकर तांडव किया था, तो उनके तांडव से सृष्टि का विनाश होने लगा था। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को 51 टुकड़ों में काट दिया। इन टुकड़ों को पूरे भारत में अलग-अलग स्थानों पर गिराया गया, जो बाद में शक्ति पीठ बन गए। शारदा पीठ मंदिर में देवी सरस्वती की एक प्रतिमा है, जो सती के दाहिने हाथ का प्रतिनिधित्व करती है।
शंकराचार्य और रामानुजाचार्य ने शारदा पीठ में हासिल की बड़ी उपलब्धि
एक समय था जब यह मंदिर भारतीय उपमहाद्वीप में शिक्षा और ज्ञान का एक प्रमुख केंद्र था। शंकराचार्य और रामानुजाचार्य, दो महान भारतीय दार्शनिक और धर्मगुरु, ने भी इस मंदिर में अध्ययन किया और महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की। शंकराचार्य, शैव संप्रदाय के संस्थापक, ने शारदा पीठ में सर्वज्ञ पीठ पर बैठा और हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने अद्वैत वेदांत, हिंदू धर्म की एक दार्शनिक प्रणाली, के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामानुजाचार्य, वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक, ने शारदा पीठ में श्रीविद्या का भाष्य प्रवर्तित किया। श्रीविद्या एक हिंदू तंत्र रहस्यवादी प्रणाली है। रामानुजाचार्य ने वैष्णव धर्म के सिद्धांतों का प्रचार भी किया, जो हिंदू धर्म की एक प्रमुख शाखा है। शंकराचार्य और रामानुजाचार्य की उपलब्धियों ने शारदा पीठ को भारतीय संस्कृति और इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। इन दोनों महान दार्शनिकों के काम ने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति को आकार देने में मदद की। 14 वीं शताब्दी तक कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर को बहुत क्षति पहुँची। बाद में विदेशी आक्रमणों में भी इसका काफी नुकसान हुआ। इस मंदिर की आखिरी बार मरम्मत 19वीं सदी के महाराजा गुलाब सिंह ने कराई थी।
शारदा पीठ: ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र
शारदा पीठ सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं था, बल्कि यह एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा और आध्यात्मिक केंद्र भी था। शारदा पीठ विश्वविद्यालय था जहाँ पढ़ने के लिए विदेशों से भी लोग आते थे। यहाँ की लिपि शारदा लिपि थी और कश्मीर का नाम इसी लिपि के नाम पर पड़ा था। शारदा शक्तिपीठ विश्वविद्यालय में 5, 000 छात्र पढ़ते थे और नालंदा के पहले यहाँ दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी थी। शारदा शक्तिपीठ की महत्ता तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों जैसी थी। यहाँ शंकराचार्य और कश्मीरी कवि कल्हण ने भी शिक्षा प्राप्त की थी।
शारदा पीठ का निर्माण और इतिहास
इस मंदिर की स्थापना पहली सदी में कुषाण वंश के शासन में हुई थी, लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि इसका निर्माण कश्मीर के कर्कोटा राजवंश के राजा ललितादित्य मुक्तपीड़ ने करवाया था। शारदा शक्तिपीठ का उल्लेख नीलमत पुराण में मिलता है, जो छठी शताब्दी में लिखा गया था। नीलमत पुराण कश्मीर के इतिहास के बारे में बताने वाली सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। 11वीं शताब्दी में कश्मीरी कवि बिल्हाड ने शारदा पीठ और यहाँ के अध्यात्म और शिक्षा के बारे में लिखा था। 11वीं शताब्दी में भारत आने वाले फ़ारसी विद्वान् अल-बरुनी ने मुल्तान के सूर्य मंदिर, स्थानेश्वर के महादेव मंदिर और सोमनाथ के साथ शारदा शक्तिपीठ के बारे में अपनी किताब में लिखा था। 12वीं शताब्दी में कश्मीरी कवि कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में माँ शारदा शक्तिपीठ को सबसे प्रमुख पूजा स्थल बताया गया था। 16वीं शताब्दी में अकबर के नवरत्नों में से एक ‘अबुल फजल’ ने शारदा शक्तिपीठ को महान पूजा स्थल बताया था। उन्होंने लिखा था कि शुक्ल पक्ष की हर आठवीं तिथि को मंदिर हिलने लगता है और सबसे ज्यादा असाधारण प्रभाव पैदा करता है।
शारदा पीठ की वर्तमान स्थिति
शारदा पीठ का निर्माण कई बार नष्ट हुआ और फिर से बनाया गया। वर्तमान मंदिर 12वीं शताब्दी में बना था। 1947 में भारत के विभाजन के बाद, शारदा पीठ पाकिस्तान के नियंत्रण में आ गया। इस दौरान मंदिर को काफी नुकसान हुआ और आज यह खंडहर में तब्दील हो चुका है। भारत सरकार ने शारदा पीठ के जीर्णोद्धार के लिए एक परियोजना शुरू की है। इस परियोजना के पहले चरण को पूरा कर लिया गया है और मंदिर अब जनता के लिए फिर से खुल गया है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान के बाद शारदा पीठ मंदिर को लेकर चर्चा
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में 23वें कारगिल विजय दिवस के लिए आयोजित एक समारोह में कहा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) भारत का हिस्सा है और रहेगा। उन्होंने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि भगवान शिव के रूप में बाबा अमरनाथ भारत में हों, लेकिन देवी सरस्वती के रूप में शारदा शक्ति LOC के दूसरी ओर हों। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के इस बयान के बाद शारदा पीठ मंदिर को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। यह मंदिर कश्मीर में स्थित है और देवी सरस्वती को समर्पित है। मंदिर 1947 में भारत के विभाजन के बाद से पाकिस्तान के नियंत्रण में है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत सरकार शारदा पीठ मंदिर को भारत का हिस्सा मानती है। यह बयान भारत के कश्मीर के प्रति दृढ़ संकल्प को भी दर्शाता है।
1947 तक कैसा दिखता था शारदा पीठ
1947 में भारत के विभाजन से पहले, शारदा पीठ एक प्राचीन मंदिर था जो कश्मीर में स्थित था।
कश्मीरी पंडित विद्वान पृथ्वीनाथ कौल बामजई ने 1947 में मंदिर में जाने वाले आखिरी लोगों में से एक थे। उन्होंने मंदिर के बारे में निम्नलिखित जानकारी दी:
- मंदिर में कोई मूर्ति नहीं थी, बल्कि एक बहुत बड़ा चबूतरा था।
- मंदिर के मुख्य प्रांगण का व्यास 22 फीट था।
- मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर था।
- मंदिर के बाहर एक शिवलिंग मौजूद था।
- मंदिर के अन्य प्रवेश द्वारों के ऊपर तोरण बने थे, जो 20 फुट ऊंचे थे।
- मंदिर के बरामदे के दोनों किनारों पर दो चौकोर आकार के पत्थर के स्तंभ थे, जो 16 फीट ऊंचे और करीब 2.6 फीट चौड़े थे।
- मंदिर के अंदर का निर्माण बहुत सादा और कम सजावट वाला था।
- मंदिर मधुमती नदी के दाहिने किनारे पर एक पहाड़ी पर स्थित था।
- हर साल तीर्थ यात्रियों का एक सालाना मेला लगता था, जो 1947 में मंदिर के पाकिस्तान के नियंत्रण में जाने के बाद बंद हो गया था।