पितृपक्ष / श्राद्ध
श्राद्ध कर्म एक ऐसा कर्म है, जिसमें हम अपने कुल देवताओं, पितरों और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं। वर्ष में पंद्रह दिन की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं, जिसे श्राद्ध पक्ष कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष की शुरुआत आज से हो चुकी है। श्राद्ध पक्ष को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप में आते हैं और उनके नाम से किए जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। श्राद्ध कर्म में तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध भोज आदि प्रमुख क्रियाएँ होती हैं। तर्पण में पितरों को जल, अन्न, फल, फूल आदि अर्पित किए जाते हैं। पिंडदान में पितरों के नाम से पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें अर्पित किए जाते हैं। श्राद्ध भोज में पितरों के नाम से ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है। श्राद्ध कर्म एक महत्त्वपूर्ण कर्म है, जिसे हमें विधि-विधान से करना चाहिए। और हमें उनके आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। पितृ पक्ष के दौरान, लोग अपने पूर्वजों के लिए दान भी करते हैं। यह दान फल, फूल, वस्त्र, आभूषण, भोजन आदि हो सकता है।
पितृपक्ष कब होता है?
पितृपक्ष हिंदू धर्म में एक महत्त्वपूर्ण पर्व है, जो हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इस दौरान, लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं।
पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म करने की दो तिथियाँ होती हैं:
- भाद्रपद पूर्णिमा: इस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो।
- पितृपक्ष की तिथियाँ: इस दौरान, उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन वर्ष के किसी भी पक्ष में हुआ हो।
पितृ पक्ष में पितरों को याद करने के तरीके
पितृ पक्ष में पितरों को याद करने के कई तरीके हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं:
- जल अर्पित करना: पितृ पक्ष में पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित किया जाता है। यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है। जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है।
- अन्न और वस्त्र का दान करना: जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है। यह दान ब्राह्मणों या जरूरतमंद लोगों को दिया जा सकता है।
- श्राद्ध भोज करना: श्राद्ध भोज में पितरों के नाम से ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है।
- पितरों को याद करना: पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों को याद करना भी एक महत्त्वपूर्ण तरीका है। इस दौरान, हम उनके नाम का स्मरण कर सकते हैं, उनके बारे में बात कर सकते हैं और उनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं।
पितृ पक्ष तर्पण विधि
प्रतिदिन सूर्योदय से पहले एक जूड़ी ले लें और दक्षिणी मुखी होकर वह जूड़ी पीपल के वृक्ष के नीचे स्थापित करके, एक लोटे में थोड़ा गंगा जल, बाकी सादा जल भरकर लौटे में थोड़ा दूध, बूरा, काले तिल, जौ डालकर एक चम्मच से कुशा की जूडी पर 108 बार जल चढ़ाते रहें और प्रत्येक चम्मच जल पर यह मंत्र उच्चारण करते रहे।
पितृ पक्ष श्राद्ध का इतिहास
कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद, जब सब कुछ समाप्त हो गया, दानवीर कर्ण मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुँचे। स्वर्ग के स्वामी इंद्र ने उन्हें स्वागत किया और उन्हें भोजन परोसा। कर्ण ने देखा कि उनके सामने सोना, चांदी और गहने परोसे गए हैं। उन्होंने इंद्र से इसका कारण पूछा। इंद्र ने कहा कर्ण, तुमने अपने जीवन में बहुत दान दिया है। तुमने सोना, चांदी, हीरे और अन्य कीमती वस्तुएँ दान की हैं। लेकिन तुमने कभी अपने पूर्वजों के लिए भोजन दान नहीं किया। इसलिए, तुम्हें सोना, चांदी और गहने खाने को दिए जा रहे हैं। कर्ण ने कहा, मैं अपने पूर्वजों के बारे में कुछ भी नहीं जानता था। मैं एक अनाथ था। मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई थी जब मैं बहुत छोटा था। मुझे अपने पूर्वजों के नाम तक नहीं पता था। इंद्र ने कहा, यह तुम्हारी गलती नहीं है। लेकिन अब तुमने पितृ पक्ष के बारे में सीख लिया है। तुम अपने पूर्वजों के लिए भोजन दान कर सकते हो। इंद्र की सलाह पर, कर्ण ने पृथ्वी पर वापस जाने का फैसला किया। उन्होंने पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों के लिए भोजन दान किया और उनका तर्पण किया। इससे उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिली और कर्ण पित्र ऋण से मुक्त हो गए।
श्राद्ध तिथियाँ की महत्ता
पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए कुल 16 तिथियाँ निर्धारित हैं। इनमें से प्रत्येक तिथि का अपना एक विशेष महत्त्व है।
पूर्णिमा तिथि : पितृ पक्ष की शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है। इस दिन को प्रोष्ठपदी श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान किया जाता है।
श्राद्ध अनुष्ठानों के लिए भारत के पवित्र स्थान
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भारत में कुछ महत्त्वपूर्ण जगहें हैं जो निर्वासित आत्माओं की शांति और खुश रहने के लिए श्रद्धा अनुष्ठान करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
प्रयाग (इलाहाबाद) , उत्तर प्रदेश
गया, बिहार
केदारनाथ, उत्तराखंड
बद्रीनाथ, उत्तराखंड
रामेश्वरम, तमिलनाडु
नासिक, महाराष्ट्रा
कपाल मोचन सरोवर, यमुना नगर, हरियाणा
सर्वपितृ अमावस्या
सर्वपितृ अमावस्या, जिसे महालया अमावस्या भी कहा जाता है, पितृ पक्ष का अंतिम दिन है। यह पितृ पक्ष की सबसे महत्त्वपूर्ण तिथि है, जब लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्र होते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्त्व
सर्वपितृ अमावस्या का महत्त्व इस तथ्य से है कि यह दिन सभी पितरों की आत्माओं के लिए समर्पित है। चाहे किसी की मृत्यु की तारीख ज्ञात हो या नहीं, इस दिन सभी पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
सर्वपितृ अमावस्या की तिथि
सर्वपितृ अमावस्या हर साल अश्विन मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। 2023 में, सर्वपितृ अमावस्या 14 अक्टूबर को है
भरणी श्राद्ध
भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान आने वाला एक महत्त्वपूर्ण दिन है। इसे ‘महाभरणी श्राद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं।
भरणी श्राद्ध का महत्त्व
भरणी श्राद्ध का महत्त्व इस तथ्य से है कि यह दिन उन सभी पूर्वजों की आत्मा के लिए समर्पित है जो अपने जीवनकाल में कोई तीर्थ यात्रा नहीं कर सके। ऐसा माना जाता है कि भरणी श्राद्ध करने से इन पूर्वजों को भी तीर्थों पर किए गए श्राद्ध का फल मिलता है।
भरणी श्राद्ध की तिथि
भरणी श्राद्ध हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। 2023 में, भरणी श्राद्ध 2 अक्टूबर को है।
भरणी श्राद्ध के अनुष्ठान
भरणी श्राद्ध के दिन, लोग अपने घरों में या किसी पवित्र स्थान पर पितरों के लिए श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं। इन अनुष्ठानों में शामिल हैं:
- पितरों को स्नान कराने के लिए जल अर्पित करना
- पितरों को भोजन और अन्य प्रसाद अर्पित करना
- पितरों के लिए दीप जलाने और धूप देने
- पितरों के लिए प्रार्थना करना
प्रतिपदा से अमावस्या तक की तिथियाँ
इन 15 तिथियों में से प्रत्येक तिथि पर किसी न किसी पूर्वज का श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु किसी विशेष तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध उसी तिथि पर किया जाता है। यदि किसी की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को किया जाता है।
द्वादशी तिथि : द्वादशी तिथि को सन्यासियों का श्राद्ध किया जाता है।
चतुर्दशी तिथि : चतुर्दशी तिथि को शस्त्र, विष, दुर्घटना से मृतों का श्राद्ध किया जाता है।
अमावस्या तिथि :अमावस्या तिथि को अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध भी किया जाता है, जिसमें सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
पितृ पक्ष तिथि : पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू हो चुके हैं। इसकी प्रतिपदा तिथि दोपहर 3 बजकर 26 मिनट से लेकर 30 सितंबर दोपहर 12 बजकर 21 मिनट तक रहेगी।
श्राद्ध की तिथियाँ
29 सितंबर 2023, शुक्रवार पूर्णिमा श्राद्ध
30 सितंबर 2023, शनिवार द्वितीया श्राद्ध
1 अक्टूबर 2023, रविवार तृतीया श्राद्ध
02 अक्टूबर 2023, सोमवार चतुर्थी श्राद्ध
03 अक्टूबर 2023, मंगलवार पंचमी श्राद्ध
04 अक्टूबर 2023, बुधवार षष्ठी श्राद्ध
05 अक्टूबर 2023, गुरुवार सप्तमी श्राद्ध
06 अक्टूबर 2023, शुक्रवार अष्टमी श्राद्ध
07 अक्टूबर 2023, शनिवार नवमी श्राद्ध
08 अक्टूबर 2023, रविवार दशमी श्राद्ध
09 अक्टूबर 2023, सोमवार एकादशी श्राद्ध
10 अक्टूबर 2023, मंगलवार मघा श्राद्ध
11 अक्टूबर 2023, बुधवार द्वादशी श्राद्ध
12 अक्टूबर 2023, गुरुवार त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर 2023, शुक्रवार चतुर्दशी श्राद्ध
14 अक्टूबर 2023, शनिवार सर्व पितृ अमावस्या