सारनाथ मंदिर
सारनाथ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले में गंगा और वरुण नदियों के संगम के पास स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। यह बौद्ध धर्म के चार सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का आरंभ यहीं से हुआ था। वाराणसी के पास स्थित सारनाथ भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। यह बौद्ध धर्म के चार सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का आरंभ यहीं से हुआ था। सारनाथ को भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली के रूप में भी जाना जाता है। यहीं पर उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया था, जिसे “धर्म चक्र प्रवर्तन” के नाम से जाना जाता है। इस उपदेश के साथ ही बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ था। सारनाथ की एक और पहचान है। यहाँ भोलेनाथ के साले सारंगनाथ महादेव का मंदिर है। मान्यता है कि सावन के महीने में भोलेनाथ काशी छोड़कर देवी पार्वती के साथ अपने साले सारंगनाथ महादेव के यहाँ मेहमान बन कर रहते हैं।इस मंदिर से भी कई मान्यताएँ जुड़ी हैं। यहाँ दर्शन करने से लोगों को संतान सुख मिलता है। शिवलिंग पर गोंद चढ़ाने से हर तरह के त्वचा की बीमारियों से आराम मिलता है।
सारनाथ की यात्रा का समय
सारनाथ की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच है। इस दौरान मौसम सुहावना रहता है। सारंगनाथ महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी मुकेश मिश्रा ने बताया कि देवी पार्वती की शादी भोलेनाथ से हुई थी। उस दौरान उनके भाई ऋषि सारंग तपस्या करने के लिए गए थे। जब वह वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि उनकी बहन की शादी कैलाश पर्वत पर रहने वाले एक अघोरी के साथ हुई है। ऋषि सारंग को यह बात बहुत बुरी लगी कि उनकी बहन एक अघोरी के साथ कैसे रह सकती है।इस बीच उन्हें पता चला कि उनकी बहन काशी में हैं। वह ढेर सारे जेवर और स्वर्ण मुद्राएँ लेकर काशी आए। जब वह सारनाथ पहुँचे तो उन्हें काशी बहुत सुंदर लगी। तब उन्हें अपनी सोच पर पछतावा हुआ। उन्होंने सारनाथ में तपस्या शुरू कर दी। भोलेनाथ उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने ऋषि सारंग को आशीर्वाद दिया कि वह सारंगनाथ महादेव कहलाएंगे। ऋषि सारंग ने भोलेनाथ से कहा कि वह काशी में ही रहना चाहते हैं। सारंगनाथ महादेव मंदिर के गर्भगृह में दो शिवलिंग विराजमान हैं। एक शिवलिंग सारंगनाथ के रूप में और दूसरा शिवलिंग सोमनाथ के रूप में। मंदिर के पुजारी के अनुसार, सारंगनाथ का शिवलिंग लंबा है और सोमनाथ का शिवलिंग गोल आकार में और ऊंचा है। सारनाथ बौद्ध धर्म का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ से ही बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ था। आदि शंकराचार्य ने यहाँ बौद्ध गुरुओं से शास्त्रार्थ किया था।
सारनाथ की प्राचीन उत्पत्ति
सारनाथ, उत्तर प्रदेश, भारत में एक प्राचीन शहर है जिसका इतिहास 2, 500 वर्ष से भी अधिक पुराना है। यह बौद्ध धर्म के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह वह जगह है जहाँ गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। सारनाथ में कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जिनमें धमेक स्तूप, मूलगंधकुटी विहार और चौखंडी स्तूप शामिल हैं।
गौतम बुद्ध का पहला उपदेश
लगभग 528 ईसा पूर्व, गौतम बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद सारनाथ का दौरा किया। यहाँ, उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया, जिसे धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त, या “धर्म का पहिया घुमाना” के नाम से जाना जाता है। इस उपदेश में, उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग को साझा किया, जो बौद्ध धर्म की नींव हैं।
अशोक का संरक्षण
सम्राट अशोक ने लगभग 250 ईसा पूर्व सारनाथ का दौरा किया और बुद्ध की शिक्षाओं की स्मृति में कई बौद्ध स्मारकों का निर्माण किया। उन्होंने धमेक स्तूप का निर्माण कराया, जो उस स्थान को चिह्नित करता है जहाँ बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। उन्होंने मूलगंधकुटी बिहार का भी निर्माण कराया, जो उस स्थान को चिह्नित करता है जहाँ बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।
गिरावट और पुनः खोज
सदियों से, भारत में बौद्ध धर्म के पतन सहित कई कारकों के कारण सारनाथ का पतन हुआ। यह खंडहर हो गया और अंततः भुला दिया गया। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश पुरातत्वविदों द्वारा सारनाथ के महत्त्व को फिर से खोजा गया, जिसके कारण व्यापक उत्खनन और जीर्णोद्धार कार्य हुआ।
पुनरुद्धार और संरक्षण
अपनी पुनः खोज के बाद से, सारनाथ के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व को संरक्षित करने के लिए महत्त्वपूर्ण बहाली और संरक्षण के प्रयास किए गए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इस क्षेत्र में स्तूपों, मठों और मंदिरों सहित विभिन्न संरचनाओं की खुदाई और जीर्णोद्धार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आधुनिक महत्त्व
आज, सारनाथ एक सक्रिय बौद्ध तीर्थ स्थल और अत्यधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व का स्थान बना हुआ है। धमेक स्तूप, मूलगंधकुटी बिहार और चौखंडी स्तूप उन उल्लेखनीय संरचनाओं में से हैं जो दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। इस स्थल पर सारनाथ पुरातत्व संग्रहालय भी है, जो बौद्ध कलाकृतियों और मूर्तियों का एक विशाल संग्रह प्रदर्शित करता है।
सारनाथ का महत्त्व
सारनाथ का समृद्ध इतिहास और गौतम बुद्ध के साथ जुड़ाव इसे बौद्धों, विद्वानों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए एक श्रद्धेय स्थान बनाता है। यह बौद्ध धर्म की उत्पत्ति और शिक्षाओं की एक झलक पेश करता है।
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धमेक स्तूप
सारनाथ में स्थित धमेक स्तूप बौद्ध धर्म के लिए एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह स्तूप लगभग 43.6 मीटर ऊंचा है और इसका निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में शुरू हुआ था। स्तूप के निर्माण का उद्देश्य गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के बाद दिए गए पहले उपदेशों की यादगारी को संजोना था।स्तूप का निर्माण ईंट और पत्थरों से किया गया है। इसके बाहरी दीवारों पर गुप्त वंश के दौरान उकेरी गई नक्काशीयाँ देखी जा सकती हैं। ये नक्काशीयाँ बौद्ध धर्म के विभिन्न अवतारों और प्रतीकों को दर्शाती हैं। धमेक स्तूप बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह स्तूप बौद्ध धर्म के इतिहास और संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण है।
चौखंडी स्तूप
सारनाथ में स्थित चौखंडी स्तूप बौद्ध धर्म के लिए एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह स्तूप लगभग 43.6 मीटर ऊंचा है और इसका निर्माण गुप्त काल के दौरान हुआ था। स्तूप का निर्माण ईंट और पत्थरों से किया गया है। चौखंडी स्तूप का नाम इसके चार मंजिलों के कारण पड़ा है। स्तूप की प्रत्येक मंजिल क्रमशः छोटी होती जाती है। स्तूप के ऊपर एक गोल गुंबद है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर गौतम बुद्ध ने अपने पाँच शिष्यों को अपना पहला उपदेश दिया था। इस घटना को बौद्ध धर्म में बहुत महत्त्व दिया जाता है। चौखंडी स्तूप के दरवाज़े पर फ़ारसी भाषा में लिखे गए शिलालेख भी देखे जा सकते हैं। ये शिलालेख मुगल बादशाह हुमायूँ द्वारा बनवाए गए थे।
सारनाथ के अन्य स्तूप
सारनाथ में चौखंडी स्तूप के अलावा भी कई अन्य स्तूप स्थित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्तूपों का विवरण इस प्रकार है:
अशोक स्तंभ
सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ भारत का राष्ट्रीय चिह्न है। यह स्तंभ सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया गया था। स्तंभ की ऊंचाई मूल रूप से 55 फीट थी, लेकिन अब यह क्षतिग्रस्त हो चुका है और इसकी ऊंचाई केवल 8 फीट है। स्तंभ के शीर्ष पर चार शेर हैं, जो भारत की एकता और शक्ति का प्रतीक हैं। स्तंभ के निचले भाग में एक चक्र है, जिसे भारत के राष्ट्रीय ध्वज में भी शामिल किया गया है। स्तंभ पर ब्राह्मी लिपि में लिखे गए लेख अशोक के आदर्शों और सिद्धांतों को व्यक्त करते हैं। अशोक स्तंभ भारत के इतिहास और संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण प्रतीक है। यह स्तंभ भारत की समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।
सारनाथ संग्रहालय
सारनाथ में स्थित संग्रहालय बौद्ध धर्म से सम्बंधित प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुओं का एक विशाल संग्रहालय है। इसमें छह हजार से अधिक बुद्ध की मूर्तियाँ हैं, जो विभिन्न कालखंडों में बनाई गई हैं। यह संग्रहालय 1910 में सारनाथ की खुदाई में मिले अवशेषों को सहेजकर रखने के लिए बनाया गया था। इसमें पांच गैलरी और दो बरामदे हैं, जिनमें तीसरी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक की बौद्ध धर्म से सम्बंधित वस्तुएँ प्रदर्शित हैं। संग्रहालय में बुद्ध की मूर्तियों के अलावा, अन्य बौद्ध अवशेष भी हैं, जिनमें बुद्ध के जीवन और उपदेशों से सम्बंधित चित्र, स्तंभ, स्तूप और शिलालेख शामिल हैं। सारनाथ संग्रहालय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सबसे पुराना संग्रहालय है, जो खुदाई स्थल पर ही मौजूद है। यह संग्रहालय बौद्ध धर्म के इतिहास और संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण है।
सारनाथ कैसे पहुँचें
सारनाथ, वाराणसी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग किया जा सकता है।
हवाई जहाज़ से
वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से सारनाथ की दूरी लगभग 15 किलोमीटर है। हवाई अड्डे से सारनाथ जाने के लिए टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस का उपयोग किया जा सकता है।
रेल से
सारनाथ में एक रेलवे स्टेशन है, जो वाराणसी और गोरखपुर के रेलवे स्टेशनों से लोकल ट्रेनों द्वारा जुड़ा हुआ है। सारनाथ स्टेशन से सारनाथ जाने के लिए टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस का उपयोग किया जा सकता है।
सड़क मार्ग से
सारनाथ वाराणसी से सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। बड़े शहरों से वाराणसी तक बस से पहुँचने के बाद, सारनाथ जाने के लिए टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस का उपयोग किया जा सकता है।