खादी सिर्फ एक कपड़ा नहीं बल्कि यह भारत के इतिहास, मूल्यों और आकांक्षाओं का प्रतीक है।
भारत में हाथ से कताई और बुनाई की परंपरा लगभग 1000 साल पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता में इसके स्पष्ट प्रमाण देखे जा सकते हैं। ।
खादी शब्द ‘खादर’से बना है। हमारे यहां हाथ से काते गए कपड़े के लिए खादी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है । खादी मुख्य रूप से कपास से बनाया जाता है लेकिन आजकल यह रेशम और ऊनी धागों से भी बनाए जाने लगा है ।
खादी कपड़े का निर्माण मोटे तौर पर दो चरणों में किया जाता है। पहले चरण में चरखे जैसे किसी उपकरण का उपयोग करके कपास को सूत में परिवर्तित किया जाता है । दूसरे चरण में हथकरघे या विद्युत करघे का उपयोग करके सूत से कपड़ा बनाया जाता है। खादी कपड़े की खास बात यह है कि यह सर्दियों में शरीर को गर्म और गर्मियों में ठंडा रखता है ।
खादी ने भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गांधी ने कहा था-” “खादी स्वतंत्रता की पोशाक है।’ पीटर गोंजल्वेस ने अपनी पुस्तक “क्लॉथिंग फॉर लिबरेशन” में कहा है कि-” गांधी ने खादी का उपयोग परिधान के रूप में कम बल्कि भारतीयों और ब्रिटिश दोनों के लिए एक संदेश के रूप में अधिक किया था।”
ब्रिटिश वस्त्रों से आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए 1918 में अविभाजित भारत के लोगों के लिए खादी की शुरुआत की गई। खादी आंदोलन एक सामाजिक, सांस्कृतिक आंदोलन था जिसकी शुरुआत 1915 में गुजरात के अहमदाबाद जिले में स्थित सत्याग्रह आश्रम आश्रम से की गई जिसे अब साबरमती आश्रम के नाम से जाना जाता है।
गांधी ने स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दिया और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का आग्रह किया। बहुत जल्द खादी राष्ट्रवाद के ताने-बाने के रूप में लोकप्रिय हो गई और कहा जाने लगा कि खादी ‘ स्वराज के धागों’ से बुनी गई है। सन 1930 में डिजाइन किए गए भारतीय राष्ट्रीय ध्वज पर भी चरखा राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में रखा गया था।
1925 में असहयोग आंदोलन के बाद खादी के विकास उत्पादन और बिक्री के उद्देश्य से ऑल इंडिया स्पिनर्स संगठन की स्थापना की गई। अगले दो दशकों तक सभी भारतीय संगठनों ने खादी उत्पादन तकनीक को बढ़ावा देने और आगे बढ़ाने और भारत के गरीब बुनकरों को रोजगार प्रदान करने के लिए अथक प्रयास किया। .
आजादी के आंदोलन के दौरान खादी आत्मनिर्भरता, सशक्तिकरण और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अवज्ञा का प्रतीक था। हाथ से बुना हुआ खादी नामक कपड़ा आजादी की लड़ाई में शक्तिशाली हथियार बन गया था। स्वतंत्रता प्राप्त करने की दिशा में खादी अत्यंत महत्वपूर्ण थी क्योंकि खादी के माध्यम से गांधी देश मे-
1. आत्मनिर्भरता एवं
आर्थिक सशक्तिकरण चाहते थे।
2. ग्रामीण पुनरुद्धार को बढ़ावा देना चाहते थे।
3. खादी राजनीतिक विरोध और राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गई थी।
4. खादी पहनने से एकता और समानता को बढ़ावा मिलता था।
5. खादी अहिंसा के प्रतीक के रूप में स्थापित हो रही थी।
औऱ
6. खादी टिकाऊ और पर्यावरण – अनुकूल वस्त्र का पर्याय बन गई थी।
सार रूप में कहें तो खादी केवल कपड़े का एक टुकड़ा नहीं बल्कि भारत के दृढ़ संकल्प और स्वतंत्रता के अथक आंदोलन का प्रतीक थी । आज हम स्वतंत्र हैं लेकिन खादी आज भी स्वरोजगार और आत्मनिर्भर ग्रामीण जीवन की धुरी है।
जब हम खादी का कोई भी कपड़ा खरीदने हैं तो हम उन लाखों बुनकरों के जीवन में उजाला कर रहे हैं जो दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं । खादी का एक सामान खरीदना किसी बुनकर के घर में दिवाली लाने जैसा है।
(विनय सिंह बैस)
खादी प्रेमी