नागेश्वर मंदिर
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर गुजरात के द्वारका शहर से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भगवान शिव के सबसे पवित्र रूपों में से एक हैं। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के बारे में कई पौराणिक कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने एक बार इस स्थान पर एक नाग को बचाया था। नाग ने भगवान शिव को धन्यवाद दिया और अपने आशीर्वाद के रूप में एक ज्योतिर्लिंग का रूप धारण कर लिया। एक अन्य कथा के अनुसार, पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी। भगवान शिव ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग एक महत्त्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल है। हर साल लाखों भक्त इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं। मंदिर की वास्तुकला भी बहुत सुंदर है
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, गुजरात के द्वारका के पास स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति एक धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य, सुप्रिय की भक्ति के कारण हुई थी। सुप्रिय भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। वह निरंतर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहते थे। अपने सारे कार्य वह भगवान शिव को अर्पित करके करते थे। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहते थे।
सुप्रिय की इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था। उसे भगवान शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरंतर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे।
एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया।
सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान् शिव की पूजा-आराधना करने लगा।
अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा।
सुप्रिय उस समय भगवान् शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा-‘अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन-से उपद्रव और षड्यन्त्र करने की बातें सोच रहा है?’
उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया।
सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।
वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान् शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान् शिवजी इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे।
उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान् शंकरजी तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।
उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया।
भगवान् शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।बाद में इस स्थान पर एक बडे आमर्दक सरोवर का निर्माण हुआ।और ज्योतिर्लिंग उस सरोवर में समाहित हो गया।
1600 शताब्दी के बाद का इतिहास
बाद में छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर की इमारतों को नष्ट कर दिया। औरंगजेब की जीत के दौरान इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। मंदिर के वर्तमान खड़े शिखर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने किया था और हम इसे आज भी देखते हैं।
वर्तमान समय
हर साल इस मंदिर में लाखों की संख्या में लोग आते हैं। महाशिवरात्रि के उत्सव पर यहाँ का सबसे बड़ा मेला लगता है और रथोत्सव मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के ठीक 5 दिन बाद रथोत्सव मनाया जाता है।
नागेश्वर कैसे पहुँचे
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका शहर से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भगवान शिव को समर्पित है।
वायुमार्ग से
नागेश्वर का निकटतम हवाई अड्डा पोरबंदर है, जो लगभग 125 किलोमीटर दूर है। पोरबंदर से नागेश्वर तक टैक्सी या बस से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
रेलमार्ग से
नागेश्वर का निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका है, जो लगभग 20 किलोमीटर दूर है। द्वारका से नागेश्वर तक बस या टैक्सी से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग से
नागेश्वर राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर स्थित है। देश के सभी प्रमुख शहरों से नागेश्वर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
- मंदिर का समय: सुबह 6: 00 से शाम 8: 00 बजे तक