करवा चौथ 2025: तारीख एवं व्रत अवधि
पूजा-विधि एवं शुभ मुहूर्त
पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:57 बजे से 7:11 बजे तक निर्धारित किया गया है। इस समयावधि में चतुर्थी व्रत का पालन व पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है।
संध्यायोग व सूतकादि का ध्यान रखें — राहुकाल (10:46 बजे से 12:13 बजे), यमगण्ड (3:07 बजे से 4:34 बजे), कुलिक तथा अन्य मुहूर्तों का पंचांगानुसार पालन करें।
सरगी का महत्व और समय
करवा चौथ व्रत शुरू होने से पूर्व सरगी खाना परंपरा में शामिल है। यह सास की ओर से दी जाती है ताकि व्रती महिला दिनभर शक्ति बनी रख सके।
इस वर्ष ब्रह्म मुहूर्त का समय सुबह 4:35 बजे से 5:23 बजे तक रहेगा। इस अवधि में सरगी ग्रहण करना शुभ माना गया है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, सरगी लेते समय महिला को पूर्व या दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
चांद उदय समय एवं व्रत खोलने का विधि
पंचांग के अनुसार, 10 अक्टूबर को चंद्र उदय समय शाम 8:10 बजे निर्धारित किया गया है। विभिन्न स्थानों पर कुछ अंतर संभव है, अतः स्थानीय पंचांग की पुष्टि करना उचित है।
चांद को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलना चाहिए। इसके पूर्व स्त्रियां 16 श्रृंगार करती हैं और खूब सज-धज कर चंद्र दर्शन करती हैं। व्रत खोलने के समय पति और माता–पिता की पूजा भी की जाती है।
पूजा सामग्री एवं मंत्र
पूजा थाली में आमतौर पर शामिल होते हैं — करवा (मिट्टी या पीतल का लोटा), दीप, अक्षत, फूल, मेवा, मिठाइयाँ, चावल, गुड़, नारियल, फल आदि।
मंत्रों में प्रमुख हैं:
ॐ गणेशाय नमः, ॐ नमः शिवायः, ॐ शिवायै नमः, ॐ षण्मुखाय नमः, ॐ सोमाय नमः
तथा व्रत संकल्प मंत्र:
“मम सुख सौभाग्य पुत्र-पौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।”
व्रत कथा विविध दृष्टिकोण
करवा चौथ व्रत के पीछे अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, विधवाओं एवं सुहागिनों की दीर्घायु एवं खुशहाली की कामना करते हुए यह व्रत प्रारंभ हुआ।
कुछ स्थानों पर कहा जाता है कि इस व्रत को माता पार्वती ने अपने पति शिव की दीर्घायु के लिए आरम्भ किया। इन सभी दृष्टांतों में व्रत का भाव, समर्पण और श्रद्धा सर्वोपरि रहती है।
विशेष संयोग व सावधानियाँ
इस वर्ष व्रत के दिन ‘सिद्धि योग’ और ‘शिवावास योग’ जैसी शुभ स्थितियाँ बन रही हैं, जिससे व्रत का फल और भी अधिक माना जा रहा है।
अगर किसी महिला को व्रत के दौरान मासिक धर्म हो, तो पारंपरिक दृष्टि से पूजा नहीं करनी चाहिए। लेकिन भाव से चंद्र दर्शन कर व्रत स्वीकार माना जाता है।
