Skip to content
Ramrajya News Website RamRajya News

Heralding RamRajya in Bharat

  • My Account
  • Dharm
  • Editorial
  • Register
  • Mandir
  • From Social Media
  • Contact Us
Ramrajya News Website
RamRajya News

Heralding RamRajya in Bharat

Balmiki-Tulsi-Ramayan

तुलसी का क्रांतिकारी योगदान–वाल्मीकीय रामायण के प्रक्षिप्त का बहिष्कार

RR Admin, June 29, 2024

मूल वाल्मीकीय रामायण में “रामायण” के शब्दार्थ “राम की यात्रा” के अनुरूप बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड की प्रक्षिप्तता की स्थापना करनेवाले विद्वानों में वासुदेव शरण अग्रवाल (1904-1960) और डॉ. नंद किशोर देवराज प्रमुख हैं।

वासुदेवशरण अग्रवाल ने वाल्मीकीय रामायण के गहन अनुशीलन के बाद एक महत्वपूर्ण शोध-आलेख “रामायणी कथा” शीर्षक से लिखा था। सौभाग्य से उनका यह आलेख वियोगी हरि द्वारा संपादित और सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली से प्रकाशित (2011) पुस्तक “हमारी परंपरा” में संगृहीत (पृ.210-232) है। अग्रवाल जी लिखते हैं—

“अब हम रामायण की कथा को लेते हैं। इसके लिये वर्तमान संस्करण का ही आश्रय लिया गया है। यह स्मरण रखना चाहिये कि वर्तमान लोक प्रचलित संस्करण दाक्षिणात्य पाठ पर आधारित है। निर्णयसागर और गीताप्रेस के संस्करण नहीं हैं। इसके अतिरिक्त इटली के विद्वान्‌ गौरेशियों ने बंगीय पाठ मुद्रित किया था, और पं. विश्वबंधु ने उत्तर-पश्चिम का पाठ प्रकाशित किया है। किंतु वे दोनों लोक में चालू नहीं हुये। फिर भी यह उल्लेखनीय है कि रामायण की उत्तरापथवाचना के, जो वस्तुत: कौशल जनपद की वाचना थी, संपादन और प्रकाशन की आवश्यकता अभी बनी हुई है। अनन्य गति से हम यहाँ प्रस्तुत प्रकाशित संस्करण को ही आधार मानकर कथा का वर्णन कर रहे हैं।

“रामायण के कुछ हस्तलेख ऐसे हैं जिनमें अयोध्याकांड को ही आदिकांड कहा गया है। ज्ञात होता है कि उस समय ‘कौशलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान्‌’ से ही ग्रंथ का आरंभ होता था।“
(पृ.215-16)

अग्रवाल जी अयोध्याकाण्ड (आदिकाण्ड) के जिस आरंभिक श्लोक का संदर्भ दे रहे हैं वह प्रचलित संस्करण (गीताप्रेस) में बालकाण्ड के पाँचवे सर्ग (सर्ग-1 से सर्ग-4 तक अन्य पुरुष में स्वयं वाल्मीकि की कथा घुसा देने के बाद) का पाँचवाँ श्लोक है—

कोशलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान्‌। निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान्‌॥

[कोशल नाम का एक ख़ुशहाल और विशाल जनपद है। वह सरयू के किनारे बसा हुआ, प्रचुर धन-धान्य से सम्पन्न है।]

अयोध्या में घटित मानव-सम्बंधों की एक अपूर्व विडम्बना के तहत पुरुषोत्तम (ईश्वर नहीं) राम जिस धैर्य और कर्तव्य-बोध के साथ सिंहासन-त्याग और वनवास-स्वीकार करते हैं, वही रामायण (राम-यात्रा) का बीज-बिंदु है। उस यात्रा पर आधारित काव्य-प्रबंध की शुरुआत के लिए इस श्लोक से अधिक सहज, सरल, लोकोन्मुख पद्य और क्या हो सकता था?

वर्तमान में प्रचलित बालकाण्ड के उपर्युक्त पाँचवें सर्ग के शुरू के चार श्लोकों का कथ्य भी द्रष्टव्य है। सर्ग-4 में वाल्मीकि द्वारा रामायण में लव-कुश को प्रशिक्षित किए जाने के बाद यह सर्ग लव-कुश द्वारा रामायण के गायन से प्रारम्भ होता है। गायन के माध्यम से ही सर्ग-5 का कथ्य यूँ शुरू होता है– समस्त पृथ्वी पूर्वकाल से जिस वंश के विजयशाली राजाओं के अधिकार में रही है, जिन्होंने समुद्र का उत्खनन कराया था, जिन्हें यात्रा-काल में साठ हज़ार पुत्र घेरकर चलते थे, वे महाप्रतापी राजा सगर जिनके कुल में उत्पन्न हुए, उन्हीं इक्ष्वाकुवंशी महात्मा राजाओं की कुल-परंपरा में रामायण नाम से प्रसिद्ध इस महान्‌ आख्यान का अवतरण हुआ है। हम दोनों (लव-कुश) आदि से अंत तक इस काव्य का पूर्ण रुप से गायन करेंगे। इसके द्वारा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—चारों पुरुषार्थों की सिद्धि होती है। अत: आप लोग दोषदृष्टि का परित्याग कर इसका श्रवण करें।

इसके बाद ही प्रचलित रामायण के बालकाण्ड के पाँचवें सर्ग का उपर्युक्त श्लोक आता है जिसका उल्लेख अग्रवाल जी मूल रामायण के आदिकाण्ड (अयोध्याकाण्ड) के प्रथम श्लोक के रूप में करते हैं।

आपको स्पष्ट हो गया होगा कि इस श्लोक के कथ्य की शैली ही वाल्मीकि की आडम्बरहीन, सरल, प्रकृत और लोकगम्य शैली है जो (प्रक्षिप्त) बालकाण्ड के पाँचवे सर्ग के ही शुरू के चार श्लोकों के कथ्य की अलौकिक, आडंबरी और अतिशयोक्तिपूर्ण शैली से इसे पृथक्‌ कर देती है।

अग्रवाल जी अपने उपर्युक्त आलेख में प्रचलित रामायण के बालकाण्ड से युद्धकाण्ड तक की कथा का संक्षिप्त पाठ देकर बालकाण्ड के प्रक्षिप्त होने का प्रमेय निर्मित करते है। फिर युद्धकाण्ड के अंतिम सर्ग में आई फलश्रुति के आधार पर उसे अंतिम काण्ड मानते हुए (निहितार्थ—उत्तरकाण्ड भी प्रक्षिप्त है) अपना आलेख निम्नलिखित निष्कर्ष के साथ समाप्त करते हैं–

“यहाँ यह उल्लेखनीय है कि वाल्मीकि-रामायण में पहले पाँच ही कांड थे। उसका आरंभ अयोध्याकांड से और समाप्ति युद्धकांड में होती थी। बालकांड और उत्तरकांड कालांतर में आगे-पीछे संकलित हुए जब गुप्त-युग में (?) उसे काव्य-रूप में परिणत किया गया।“
(पृ.232)

यहाँ ‘कालांतर’ शब्द तो सर्वथा समीचीन है किंतु गुप्तकाल का निश्चयात्मक उल्लेख अन्य विवादों को जन्म दे सकता है। कारण, कालिदास के रघुवंशम्‌ में भी उत्तरकाण्ड के सीता-निर्वासन और शम्बूक-वध प्रसंग आते हैं जिससे उत्तरकाण्ड का समावेश कालिदास के पूर्व इंगित होता है। कालिदास का समय यद्यपि पाश्चात्य विद्वान्‌ गुप्तकाल मानते हैं किंतु भारतीय विद्वान्‌ विक्रम संवत्‌ के जनक उज्जयिनी-नरेश विक्रमादित्य और कालिदास के नाटक विक्रमोर्वशीयम्‌ की सम्बद्धता तथा कालिदास के समस्त साहित्य में उज्जयिनी और महाकाल से उनके अकाट्य सम्बंध के प्रभूत साक्ष्य के आधार पर (गुप्त राजाओं की राजधानी उज्जयिनी नहीं, पाटलिपुत्र थी) उन्हें एकमत से पहली शताब्दी ई. पू. में रखते हैं; विक्रम संवत्‌ ईसवी सन्‌ से 57 साल पहले शुरू हुआ था। अंधानुकरण किसी का भी हो, त्याज्य है।

आधुनिक भारत के बहुआयामी चिंतकों में अग्रगण्य डॉ. नंद किशोर देवराज (जन्म:1917) भी लखनऊ विश्वविद्यालय की देन थे (कई साल पहले एक दुर्भाग्यपूर्ण सड़क-दुर्घटना में उनकी असामयिक मृत्यु हो गई)। वे लखनऊ विश्वद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक रहे, तदुपरांत उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष का कार्यभार सँभाला। इस विश्वविद्यालय के उच्चानुशीलन केंद्र के निदेशक भी रहे। भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्‌ के सीनियर फ़ेलो के रूप में पौर्वात्य और पाश्चात्य दर्शन और संस्कृति पर उन्होंने अभूतपूर्व कार्य किया। हिंदी में उन्होंने कई उच्च कोटि के उपन्यास और कविताएँ भी लिखीं तथा सैद्धांतिक आलोचना पर अपनी सुसंगत साहित्य-दृष्टि का ख़ुलासा किया। उनकी पुस्तकों में Philosophy of Culture and an Introduction to Creative Humanism’ (हिंदी में—‘संस्कृति का दार्शनिक विवेचन’), ‘Freedom, Creativity and Value,’ ‘Humanism in Indian Thought’, ‘Limits of Disagreement’, ‘The Mind & Spirit of India, ‘Hinduism and the Modern Age, ‘Hinduism and Christianity’, ‘Islam and the Modern Age Society’, ‘दर्शन: स्वरूप, समस्याएँ एवं जीवन-दृष्टि’ और ‘भारतीय संस्कृति: महाकाव्यों के आलोक में।’

डॉ. नंद किशोर देवराज अपनी पुस्तक “भारतीय संस्कृति: महाकाव्यों के आलोक में” {उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (हिंदी समिति प्रभाग) लखनऊ,1979 संस्करण} में पृष्ठ 226–229 पर वाल्मीकीय रामायण के हर काण्ड की कथा के प्रमुख प्रसंगों का उल्लेख करते हैं। पृष्ठ 228 पर युद्धकाण्ड और उत्तरकाण्ड के कथा-प्रसंगों का उल्लेख करते हुए वे लिखते हैं—

“युद्धकाण्ड–…..चौदह वर्ष पूर्ण होने पर राम का अयोध्या प्रत्यागमन। भरत द्वारा राज्य-रूप धरोहर का वापस देना। पुष्पक विमान का लौट जाना। राम का अभिषेक। सीता द्वारा हनुमान को हार का दान, राम के राज्य का वर्णन और रामायण की कथा सुनने के फल का कथन।

“उत्तरकाण्ड—रामायण-श्रवण के फल-कथन से जान पड़ता है कि मूल रामायण युद्धकाण्ड के साथ समाप्त हुई थी। उत्तरकाण्ड में काफ़ी बाद को सुग्रीव, विभीषण आदि का प्रयाण दिखाया गया है (जब कि युद्धकाण्ड में राज्याभिषेक के तुरंत बाद उनकी विदाई हो जाती है)।“

इस तरह डॉ. देशराज भी उत्तरकाण्ड को प्रक्षिप्त मानते हैं।

बालकाण्ड के सम्बंध में डॉ. देवराज इसी पुस्तक के पृष्ठ 226 पर अयोध्याकाण्ड के कथा-प्रसंगों का उल्लेख करते हुये लिखते हैं—

“अयोध्याकाण्ड काव्य की दृष्टि से रामायण का सर्वश्रेष्ठ अंश है। बालकाण्ड में अलौकिक कथाओं की भरमार है, अयोध्याकाण्ड में विशुद्ध मानवीय कथा कही गई है।“

इस तरह डॉ. देवराज की कसौटी कथा-प्रसंगों की मानवीयता बनाम अलौकिकता है। लोक में रामकथा अतिप्राचीनकाल से प्रचलित थी। निश्चय ही यह लोककथा प्रकृत रूप से अलौकिकता और राम पर अवतारत्व या ईश्वरत्व के आरोपण से मुक्त थी। वाल्मीकि ने इसी लोककथा के आधार पर अपने आदिकाव्य में विडंबनाओं से भरी राम-यात्रा के लौकिक आख़्यान को प्रबंध काव्य का रूप दिया। रामायण काल तक वासुदेव भक्ति संप्रदाय के अवतारवाद का उदय ही नहीं हुआ था। यह तो बाद के महाभारत काल की उपज थी। महाभारत में भी रामकथा आती है जिससे सिद्ध होता है कि रामकथा उसके बहुत पहले से लोक में प्रचलित थी जब अवतारवाद का उदय नहीं हुआ था।

वाल्मीकीय रामायण में बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड तो पूर्णत: प्रक्षिप्त हैं ही, शेष पाँच काण्डों में भी यत्र-तत्र प्रक्षिप्त घुसाकर पुराण-शैली में अलौकिकता की पच्चीकारी कर दी गई है। जहाँ-जहाँ कथा में अलौकिकता का तत्व आता है या राम पर आदर्श पुरुष, आदर्श राजा और आदर्श लोकनायक से इतर अवतारत्व या ईश्वरत्व का आरोपण होता है, वे सभी अंश बाद के प्रक्षिप्त हैं। इसके लिये वाल्मीकीय रामायण के विभिन्न वाचनों तथा हस्तलिखित प्रतियों में उपलब्ध पाठों के गहन परीक्षण से प्रक्षिप्त अंशों की पहचान और उनके बहिष्करण की ज़रूरत है। यह शुद्ध रूप से अकादमिक काम है। किंतु इसका एक अनिवार्य राजनीतिक परिप्रेक्ष्य भी है। सामान्य जन में गहरी जड़ें जमाये जो आस्था (या दुरास्था) का तत्व है, इस प्रयास को अतिरिक्त पेचीदा और जोखिम-भरा बनाने के लिए नियतिबद्ध है। जो भी हो, सनातन के मूलाधार में जो सतत अग्रगामी परंपरा अभिनिविष्ट है उसे कभी न कभी यह कठिन कार्य हाथ में लेना ही होगा।

तुलसी ने और नहीं तो उत्तरकाण्ड के अमानवीय एवं अयुक्तिपूर्ण सीता-निर्वासन और शम्बूकवध के अधोगामी प्रसंगों का बहिष्करण कर एक क्रांतिकारी परंपरा का सूत्रपात किया। उस परंपरा में अभी प्रभूत संभावनाएँ संगर्भित हैं।

By – कमलाकांत त्रिपाठी From Social Media

Post navigation

Previous post
Next post

Related Posts

Articles

Why Hindus Stopped Fighting: A Spiritual and Cultural Autopsy

May 21, 2025May 22, 2025

Faith, Identity, and the Decline of Hindu Resistance In India, discussions about the decline of Hindus and the expansion of Islamic influence are frequent. Yet, rarely do we explore the core reason behind this shift. The collective character of any civilization doesn’t form in a year or two—it takes thousands…

Read More
By - Sarvesh Kumar Tiwari

आज के रावण

October 24, 2023

रावण की कथा से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि कोई अधर्मी व्यक्ति कितना भी सुन्दर स्वरूप बना ले, स्वयं को कितना भी धार्मिक बता दे, उसपर विश्वास नहीं किया जाना चाहिये। यदि विश्वास करेंगे तो आपका हरण होगा… अब प्रश्न यह है कि आप पहचानेंगे कैसे? साधु वेश…

Read More
From Social Media

When Justice Blinks: Revisiting Legal Challenges to Religious Texts in Secular India

June 3, 2025June 3, 2025

Yato Dharmastato Jayaḥ? (Where There Is Justice, There Is Victory) India, as a secular democracy, guarantees freedom of religion and expression under its Constitution. Yet, these very freedoms have come under debate in legal cases that question whether religious texts should also be held accountable to modern standards of justice…

Read More

Leave a Reply Cancel reply

You must be logged in to post a comment.

Recent Posts

  • National Push Enhances Post-Harvest Systems
  • India Boosts Green Tech Adoption in Food Processing Sector
  • India Launches 100-Day Drive for a Child Marriage Free Bharat
  • Putin’s Il-80 ‘Flying Kremlin’ Becomes World’s Most-Tracked Jet
  • Labour Codes Reshape BOCW Protections Nationwide

Recent Comments

No comments to show.

Archives

  • December 2025
  • November 2025
  • October 2025
  • September 2025
  • August 2025
  • July 2025
  • June 2025
  • May 2025
  • April 2025
  • March 2025
  • February 2025
  • January 2025
  • December 2024
  • November 2024
  • October 2024
  • September 2024
  • June 2024
  • May 2024
  • January 2024
  • November 2023
  • October 2023
  • September 2023
  • August 2023

Categories

  • Ancient Bharat
  • Article 1
  • Article 2
  • Article 3
  • Article 4
  • Articles
  • Artist
  • BB – Article 1
  • BB – Article 2
  • BB – Article 3
  • BB – Article 4
  • BB – Article 5
  • Beauty
  • Bharat
  • Bihar
  • Business and Economy
  • By – Devendra Sikarwar
  • By – Kumar Satish
  • By – Menuka Shahi
  • By – Nitin Tripathi
  • By – Raj Shekhar Tiwari
  • By – Sarvesh Kumar Tiwari
  • By – Shanees Arya
  • By – Shouvik Roy
  • By – विनय सिंह बैस
  • By – कमलाकांत त्रिपाठी
  • Career
  • Covid
  • Defence
  • Dharm
  • Editorial
  • Educational
  • Elections
  • Events
  • Expose-Series
  • Festivals
  • From Social Media
  • GeoPolitics
  • Glorious Bharat
  • Health
  • Inspired by SM Posts About Current Events
  • International
  • Life style
  • Lok Sabha
  • Mandir
  • Model
  • Nation First
  • News
  • Operation Sindoor
  • Photography
  • Politics
  • Press Release
  • Rajya Sabha
  • Ramayan Series
  • Ramp
  • Rituals
  • Sports
  • Tips & Tricks
  • Trends
  • Uncategorized
  • Warfare
  • बदलता भारत

Tags

##India #AatmanirbharBharat #AmitShah #AtmanirbharBharat #BiharElections2025 #BiharPolitics #BJP #BreakingNews #CulturalHeritage #CyberSecurity #DigitalIndia #Diplomacy #ECI #EconomicGrowth #ElectionCommission #GlobalTrade #GoodGovernance #GovernmentOfIndia #IndiaEconomy #IndianEconomy #IndiaNews #IndianNavy #IndianPolitics #IndianRailways #MakeInIndia #MaritimeSecurity #NarendraModi #NationalSecurity #NortheastIndia #OmBirla #PiyushGoyal #PMModi #PresidentMurmu #RamRajyaNews #RuralDevelopment #ShivrajSinghChouhan #SkillDevelopment #SpecialCampaign5 #SupremeCourt #SwachhBharat #TeamIndia #ViksitBharat #ViksitBharat2047 #WomenEmpowerment innovation

Categories

  • Ancient Bharat (10)
  • Article 1 (1)
  • Article 2 (1)
  • Article 3 (1)
  • Article 4 (1)
  • Articles (34)
  • Artist (1)
  • BB – Article 1 (2)
  • BB – Article 2 (2)
  • BB – Article 3 (2)
  • BB – Article 4 (2)
  • BB – Article 5 (2)
  • Beauty (2)
  • Bharat (46)
  • Bihar (121)
  • Business and Economy (7)
  • By – Devendra Sikarwar (10)
  • By – Kumar Satish (2)
  • By – Menuka Shahi (1)
  • By – Nitin Tripathi (1)
  • By – Raj Shekhar Tiwari (2)
  • By – Sarvesh Kumar Tiwari (1)
  • By – Shanees Arya (1)
  • By – Shouvik Roy (1)
  • By – विनय सिंह बैस (4)
  • By – कमलाकांत त्रिपाठी (1)
  • Career (18)
  • Covid (6)
  • Defence (9)
  • Dharm (170)
  • Editorial (18)
  • Educational (4)
  • Elections (106)
  • Events (3)
  • Expose-Series (2)
  • Festivals (133)
  • From Social Media (33)
  • GeoPolitics (7)
  • Glorious Bharat (9)
  • Health (28)
  • Inspired by SM Posts About Current Events (1)
  • International (32)
  • Life style (1)
  • Lok Sabha (6)
  • Mandir (22)
  • Model (3)
  • Nation First (8)
  • News (4,808)
  • Operation Sindoor (8)
  • Photography (2)
  • Politics (65)
  • Press Release (8)
  • Rajya Sabha (1)
  • Ramayan Series (4)
  • Ramp (3)
  • Rituals (22)
  • Sports (72)
  • Tips & Tricks (1)
  • Trends (4)
  • Uncategorized (13)
  • Warfare (1)
  • बदलता भारत (8)
©2025 RamRajya News | WordPress Theme by SuperbThemes
Go to mobile version